जैन इतिहास की पूर्व पीठिका और हमारा अभ्युत्यान | Jain Itihas Ki Purv Pathika Aur Hamara Abhyutyan

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Jain Itihas Ki Purv Pathika Aur Hamara Abhyutyan  by हीरालाल जैन - Heeralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जैन इतिहासकी पूर-पीठिका [९ भलुष्यौको छराया } इस प्रकार थे ज्योतिष शासत्रके भादि भावि- प्कतौ उरते दै । उनके पीछे सम्भति, क्षेमंघरादि हुए. जिन्‍्दोंनि ज्योतिष शासत्रका ज्ञान बढाया, अन्य कलाओका साविषार किया व सामाजिक नियम दण्ड-विधानादि नियत किये। जैन पुराणाने इस इतिद्ासका, यदि विचार किया जाय तो, सचमुच बहुत अच्छे प्रकारसे सुरक्षित रफ्जा है। धर्मक संस्थापक । फुलकरोफे पश्चात्‌ ऋ्षमदेव हुए जिन्हने घमैकी संस्था- पना की। इनका स्थान जैसा जैन पुराणम है वैसा हिन्दू धुराणोमि भी पाया जाता है। पह्ां भी पे इस सृष्टिके आदियमे खर्य॑भ मनुसे पांचवी पीढीम हुए बतलाये गये है, और वे दशके अवतार मिने जाते है। उनके द्वारा धर्मका जैसा प्रचार हुआ उसका भी वहां वर्णन है। जैन पुराणोम कहा ঘযা ই कि करपमदेवने अपनी ज्येष्ठ पुत्री ' ब्राक्षी ! के लिए लेखनकलाका आविष्कार फिया। उन्हींके नामपससे इस आविष्कृत लिपिका नाम ' ब्राह्मी लिपि ! पढ़ा। इतिद्वासक्ञ ब्राक्षी लिपिके नामसे भलीभांति परिवित हैं। भाधुनिक नागरी लिपिका यही प्राचीत নাল है। ऋपमवदेवके ज्येष्ठ पुत्रका नाम भरत था जो आदि चक्रवर्ती हुए | भरत चक्रवर्तीका नाम हिन्दू पुराणों भी पाया जाता दै, यद्यपि उनके वंशका वर्णन वदां इछ भित्र दै | र्दी भरतके नामस यद क्षेत्र भारतवर्ष कदलाया। हिन्दू पुराणोम ऋषमभदेवके पश्चात्‌ होनेवाले तीर्थकरोंका उष অনীক नहीं पाया गया, पर जैन प्रैथोमे उन सब पुरुषों का घरित्र वर्णित है जिन्होंने समय समय पर ऋषभदेव द्वार




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