ब्रजभाषा का व्याकरण | Brijbhasha Ka Vyakaran

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Brijbhasha Ka Vyakaran by किशोरीदास वाजपेयी - Kishoridas Vajpayee

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उच्चारण में यह विभिन्नता देशकाल के भेद से होती है और इस / प्राकृतिक गति से होती है कि आप को पता नहीं चल सकता ! हमारी हिन्दी में और बंगला भाषा में क्रितना अन्तर है ? दोन। साषाएँ स्पष्टतः अलग-अलग ह । परन्तु यदि आप कानपुर से कलपत्ते को पैदल चले श्रौर प्रति दिन तीन-चार मील की यात्रा करें, तो आप को 'यह न मालूम होगा कि किस गाँव में कहाँ हिन्दी समाप्त हो कर ' बिहारी ” शुरू हुई और किस स्थान पर (बिहारी की सीमा समाप्त हुई तथा वगला” आयी | आप मजे से बंगला के क्षेत्र में पहुँच जायेंगे और आसानी से, अपने आप यह भाषा आपको आ जायगी। वस्तुतः बह कानपुर की हिन्दी ही इस तरह बंगला भाषा से रूप में परिवतित सी जान पड़ेगी। इसी तरह काल भेद से भाषा-भेद होता है | जिस हिन्दी को आप आज इस रूप में देखते हैं, वह अब से दो सौ वर्ष पहले कुछ भिन्न रूप में थी और आगे दो सौ वर्ष चाद इसका रूप कुछ और ही रूप हो जायगा। उद्चारण में भिन्नता होती जाती है। लोग सुगमता की ओर दौड़ते है। इस प्रवृत्ति को कोई रोक नहीं सकता। यदि रोकने का उपाय व्याकरण आदि से किया जायगा, तो साधारण जनता पर उसका कुछ भी असर न होगा। भाणा बराबर परिवतेन की ओर बढ़ती जायगी; पर अत्यन्त धीरे-धीरे | यदि आठ-द्स सौ वषे का कोई व्यक्ति अभी तक जीवित रहता, तो उसे यह बिल- कुल न मालूम रहता कि हिन्दी कैसे चन गई, कब बन गई ! यह क




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