बाल जीवन | Bal Jeevan
श्रेणी : जीवनी / Biography
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
117
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उसने घर से भाग जाने की ठाती। घर से बनारस,
विच्ध्याचल आदि समीप की जगहों पर वह एकाध बार
रेल से पहले हो भी आया था। इस बार वह कहीं दूर,
काफी दूर, जाना चाहता था--इतनी दूर, जितनी दूर
कलकत्ता ।
किन्तु वर्ह तक रेख से जाने के लिये पास मे पैसा
भी तो होना चाहिए । भाग्य से बेल की बिक्री से आये
वाईस रुपये उसके हाथ लग गये। वह इन्हीं को लेकर
रानी की सराय स्टेशन की ओर चल पड़ा ।
अपनी इस यात्रा के बारे में उसने स्वयं लिखा है:
“सूर्य ढल चुका था, जब कि में रेल में सवार हुआ ।
टिकट बनारस का लिया; क्योकि वही रास्ता जाना-
पहचाना था । वहीं से मुगल्सराय ओर मागे विन्ध्या-
चल गया। मन में झिझ्चक जरूर थी, लेकिन घर लौटना
भी असंभव था। दो-दो कसूर सिर पर थे--दो-ढाई सेर
घी खराव कर देने का कसूर और बाईस रुपये लेकर
भाग जाने का वसूर । अन्त में हार-पछताकर यही तै
करना पड़ा--चलो कलकत्ता ।”
वालकते में केदारताथ पांडे को घर से भागे हुए
अपने जैसे चार-पांच और भी तरूण मिले । सबकी एक
मण्डडी वन गई। इस मण्डली की याद केदारनाथ को
অহা অলী रही । इसके दारे भ आगे उसने लिखा :
१७
User Reviews
No Reviews | Add Yours...