भारत के चिकित्सा वैज्ञानिक | Bharat Ke Chikitsa Vaigyanik
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15.47 MB
कुल पष्ठ :
201
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about कृष्ण मुरारी लाल श्रीवास्तव - Dr Krishna Murari lal Srivastava
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भारत के चिकित्सा वैज्ञानिक ३
मे एक अच्छा साथी बन सकेगा।'' अपनी पुत्री के चिकित्सकीय जीवन के विषप्र
में उनका आदर्शवाद और स्वप्न किसी भी समझौते के लिए तैयार नहीं थे। फिर भी
उन्होने चिकित्सकीय जीवन प्रारम्भ करने से पूर्व ही उसे छोड़ने का निश्चय कर लिया ।
महाविद्यालयी शिक्षा--फर्ग्यूसन कॉलेज पुणे (पूना) मे बी एससी के
आधारभूत विज्ञान पादू्यक्रम के अन्तर्गत उपलब्ध वनस्पतिशास्त्र एव प्राणीशास्त्र विषयों
मे अध्ययन जारी रखने के अलावा उनके लिए अन्य विकल्प नहीं था। कॉलेज मे
वह एकमात्र छात्रा ओर प्रथम महिला फैलो थी ' उन्होने इन दोनो विषयों मे बम्बई
विश्वविद्यालय मे सर्वप्रथम स्थान प्राप्त किया एव प्राप्तॉक के प्रतिशत की दृष्टि से
एक कीर्तिमान स्थापित किया, किन्तु उनके प्रिय पिताश्री ने उन्हे इस हेतु बधाई नही
दी। उनमे गहरी निराशा व्याप्त थी, वह इसे प्रतिभा की सम्पूर्ण बबादी और चिकित्सा
विज्ञान के लिए महान् क्षति मानते थे। उनकी आशा और योजना मे भी बाधा पहुँची
क्योकि वहं उस जीवन-पथ पर अग्रसर नहीं हो सकी, जिसका उन्होने इरादा किया
था। इस भूल के लिए उस नौजवान को दोषी ठहराया गया जिससे उनकी मुलाकात
हुई थी और उसे परोक्ष रूप से इसके लिए उत्तरदायी मान लिया गया।
उन्होने बी एस सी की स्नातक उपाधि विशेष योग्यता के साथ प्राप्त की ओर
1938 ई मे कॉलेज फैलो नियुक्त की गई। फर्ग्यूसन कॉलेज के इतिहास मे ऐसा
कई वर्ष बाद हुआ कि एक महिला विद्यार्थी ने प्रथम श्रेणी प्राप्त की और वह भी
विज्ञान मे। उन्हे स्नातकोत्तर अध्ययन हेतु सन् 1938 ई मे कॉलेज की योग्यता
फैलोशिप प्रदान की गई थी। एक बार फिर वह अपने पिता के समक्ष उनसे विषय
के चयन के सम्बन्ध मे उपस्थित हुई, जिन्होने उन्हे उस समय जीव विज्ञान के अन्तर्गत
सर्वाधिक आधुनिक समझे गए विषय ' कोशिका विज्ञान' के अध्ययन का सुझाव दिया।
उन्हे कृषि महाविद्यालय पूना मे आधुनिक जीव विज्ञान के अन्तर्गत कोशिका विज्ञान
मे प्रथम श्रेणी छात्रो के लिए एकमात्र आरक्षित स्थान पर एम एस सी मे प्रवेश मिल
गया। सन् 1938 40 का समय था और उन्हे प्रख्यात कोशिका-विज्ञानी प्रोफेसर
एल एस कुमार के साथ कार्य करने का अवसर प्राप्त हुआ। कोशिका के कैसर रोग
के अध्ययन मे उसके सम्भावित उपयोग के विषय मे उनके पिता की पूर्व दृष्टि सहित
नियोजित कोशिकाओ के अध्ययन का यह प्रारम्भ था।
अपने अनुभवों का वर्णन उन्होने इस प्रकार किया है-' महाविद्यालय को
एकमात्र महिला विद्यार्थी होने के कारण मुझे कई समस्याओ का सामना करना पडता
था। मै एनीनेसी (2000180686) कुल के पौधों के कोशिका तत्र पर कार्य कर रही
थी। मुझे प्रतिदिन साइकिल से कृषि महाविद्यालय ओर वहाँ से गणेशखण्ड उद्यान
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