संत समागम भाग 2 | Sant Samagam Part-2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
378
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about मदनमोहन वर्मा - Madanmohan Verma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)~ 3500 0 लक टेक कि सक्षिय को = नव
रन जनन ६. दता सयक मदय = चमसा नवं
ए, : হা न वव
र्ना प्सा ईइ 15; तत दम र यर्नं चच =:गन्त 5 न्ह
श
भ ভি তক ---->> টিটি এটিও य साउचा
হয হতে ता 53 चसक ~ सकि का श्ना
न সি ¢ ০
फरना एकमात्र प्रमभाद के जआातारक्त हार कुछ অন লগা
रखता ।
रे ক ১ তি ये ক पल ह्वार
ह्म् पृण रचतनन्त्र छान क परतन्त्र सहा + चर हमार
ক,
লিজ জ্বী (লী লনদ্চাত में € ভিলা ই ছি উলাতী
অহবল্লজা টা শী লান্নিচ্ঘলাস स सत्ता লিক जाती 1 यद
नियम हे कि जिसकी सत्ता भास होने लगती है, उसमे प्रियता
उत्पन्न हो जादी है, प्रियता आते ही अस्वाभाविक परिवतंन-
शील जीवन में आसक्ति हो जातो है, वस यही परतन्त्रता की
सत्ता हं आर इछ नदी । यदि हम खयं अपने ऊपर अपनी
छपा कर, तो निजीव परतन्त्रता स्वतन्त्रता में परिलीन হী
सकती हं
हम सबसे बड़ी भूल यही करते हैं कि जो हमसे भिन्न है,
उनकी रूपा की प्रतीक्षा करते रहते ই। भला लिन वेचारों का
जीवन केवल हमारी स्वीकृति के आधार पर जीवित है उनमें
हसारे ऊपर कृपा करने की शक्ति कहाँ ? हम अपनी की हुई
स्वीकृति को स्वयं स्वतन्तरतापूवेक मिटा सक्ते हैँ 1 समी परि-
चतंनशील क्रियाओं का जन्म हमारी अस्वाभाविक काल्पनिक
स्वीकृति के आधार पर होता है | अतः सानी हुई अहंता
User Reviews
No Reviews | Add Yours...