आधुनिक भारतीय राजनीतिक चिन्तन | Aadhunik Bharatiya Rajneetik Chintan

Aadhunik Bharatiya Rajneetik Chintan by डॉ. विश्वनाथप्रसाद वर्मा - Dr.Vishwanathprasad Varma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारत मे पुनर्जागरण तथा राष्ट्रवाद 5 1824-1891 हरप्रसाद शास्त्री आर जी मडारकर रमेश दत्त तथा बाल गगाधर तिलक ने भी अध्ययन वे क्षेत्रा मे योग दिया । यूरोपीय भारत विद्या विशारदो के अध्ययन वा मुग्य क्षेत्र भापाओ से सम्बाघित था और उनकी पद्धति वैज्ञानिक थी । इसके विपरीत थियासोफीक्ल सासाइटी ने जिसकी स्थापना 1875 में मेडम लैवटस्की 1831-1891 भर कनल्‌ ओट्काट न की थी पढने वाली जनता का ध्यान प्राचीन चितन के उन पहलुआ की ओर आईप्ट किया जिनका सम्व ध लोकोत्तर जीवन अघ मनोमय जगत मत्यु तथा मरणोपरात जीवन वी समस्याओं से था । इससे कुछ लोगा के मन मे जीवन के उन मानमिव स्तरा के प्रति उत्कण्ठा जाग्रत हुई जिनका वणन प्राचीन हि टू धमशास्त्रो मे पाया जाता था । यियासोपी ने हिट योग के विचारा ओर धारणाओआ। का वैनानिक विकास की पदावली मे व्यास्या वरने का भी प्रयत्न क्या । इस थियोसोफी आदोलन के नेताओ मे एक संघस बड़ा नाम श्रीमत्तो एनी वेसेट का है । जौल्काट भौर ब्लैवट्रकी पर वौद्धो के आचारवाद का प्रभाव पड़ा था | इसके विपरीत एनी व्मेंट को हिंदू धम से गहरी प्रेरणा मिली थी और उहहाने पौराणिक हिंदू घम तथा सुर्ति पूजा की सी उपक्ष नहीं की । उहोन 1893 में भारत भूमि पर पदापण क्या । हिदुओ के घम भौर सस्कृति के प्रति उनकी भवित वास्तविक ग्रहन तथा अदभुत थी । उ्हाने हिट सम्कृति के हर रूप भौर पहलू का समथन किया । 1913 म वे भारतीय राजनीति मे कूद पड़ी और उठोंने अनेक वर्षों तक मारतीय नेताजा के घनिप्ठ सम्पक में रहकर काय किया । रामकृप्ण परमहस के प्रमुख टिप्य स्वामी विवेकानद ने एक अय ऐसा भादोलन चलाया जिसने हिंदुत्व के ब्यापक तथा समग्र रुप का पक्षपोपण किया । सभी स्वीकार करते है कि रामट्प्ण की आध्यात्मिक अनुभूति अत्यत्त गहरी और धार्मिक हप्टि बहुत ही व्यापक थी । बगाल के आध्यात्मिक तथा नैतिक पुननिर्माण पर उनका भारी प्रभाव पडा है 1 स्वामी विवेकानंद बडे मेघावी तथा महान वक्ता थे । वेदात वे वार मय तथा पाइ्चात्य दशन दानों मे ही उनकी अदभुत पहुँच थी । 1893 मे शिकागो के विदव धम सम्मेलन में उदोने जो ऐतिहासिक भूमिका अदा की उससे अमेरिका म ओर अदत यूरोप म हिंदुत्व के प्रचार का माग प्रशस्त हुआ । यद्यपि वेदाती होने के नात विवेकानद विश्व वघुत्व के आदेश को मानने वाले थे फिर भी उनसे उत्कप्ट देव मक्ति थी और उहोंने भारतीया को भात्मनिमरता शक्ति और सवसे अधिक निर्मीकता का उपदंदा दिया । यद्यपि अतिदय काय करने के कारण उनकी अल्पायु मे ही मत्यु हो गयी फिर भी उ हें वेगाली राष्ट्रवाद का आध्यात्मिक जनक माना जाता है और यह उचित ही है। घगाली राष्ट्रवाद के नायक तथा सदेद्यवाहक के रूप में विवेकान दे वी भ्रुमिका की सराहना लाला लाजपंत राय तथा सुमापचद्ध बोस दोनो ने की है । 1892 मे स्वामीजी तिलक के यहा अतिथि बनकर ठहर थे और दोनां में एक दूसरे के प्रति गहरा सम्मान तथा प्रेम था । उत्तर भारत तथा मद्रास प्रात मे पुनजागरण का रुप मुख्यत आध्यात्मिक तथा धामिक था । मद्रास में राजनीतिक चेतना जाय्रत करने वाली महान विभूतियो म वीर राघवाचाय सुब्वाराव पुतुलू रगइया नाइडू तथा जी सुब्रमण्य अय्यर के नाम उल्लेखनीय है । थियोसोफी का मारतीय मुख्य स्थान मद्रास म था । कितु पश्चिमी मारत सम पुनजागरण प्रधानत सामाजिक तथा दैक्षिक 12 रमशचद्ध दत्त 1848 1909 1869 मे आई सी एस वी अतियोगी परीला में सम्मिलित हुए और सफलता प्राप्त की । उद्दाने 2८लरणापद सिएरण0 गए उावद दो जिलों में के बतिरित्त एक एन कप्टवणा दु ताददाई उपपीद 3 जिल्‍टा म नामक ग्रय भी लिखा । उठनि ऋग्वत महाभारत भौर रामायण का अनुवाद भी दिया । उन्हनि दगला मे वगबविजेता 1874 महाराष्ट्र जीवन प्रभात 1877 राजपूत जीवन साघि 1878 समाज 1895 आईि उपयास भी लिखे । था 13 थियोसोफीकल सौसाइटा के सस्यापका तथा स्वामा दयान क॑ बीच कुछ पत्र व्यवहार भी हुआ था । सौल्काट 1832 1907 तथा नववटहकों 1879 मे भारत साये किठु इन दोता सठाजा ठया कट्टर वटवादी दयानह के बाच सहयाग सम्भव नहा हा सका । 14. 1880 मे ओल्काट और लवटस्ती ने सका स वौद्धां के पचशोल की दीसा ली थी । 15 बाल मे राज नारायण बोस ने 1861 मे सोसाइटी आव द प्रोमाशन आव नशनत ग्लोरो नामक सर्यां की स्पापना को थी ।




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