श्री रामकृष्णार्पणमस्तु | Shree Ramkrishnaarpanmastu

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Shree Ramkrishnaarpanmastu  by स्वामी विवेकानन्द - Swami Vivekanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना * ९. सीमा द । इसीलिए अन्य व्यक्तियों के विपय में অব कद्दा जाता दे, उसी प्रकार अपने प्रति भी उनके श्रीमुख से शब्द निकला करते थे । ११. टस कार उन्दोने जगत्‌ के कल्याग के लिए जो चरित्र कर दिखाया और उसे परम कारुणिकता से स्वयं ही स्पष्ट रीति से बता दिया, वह कितना सनोहर और वोधप्रद होगा यह वत्ताना अनावदयकर दै । वसेमान चरित्र मुख्यतः जिस आधार पर से लिखा गया है वह मूल चरित्र ( श्रीराम- क्ृष्णलीला-प्रसंग ) बंगला भापा में हैं और उसके लेखक दे स्वामी शारदा-- नन्दजी जौ उनके प्रमुख शिष्यों में से एक थे तथा जिन्हें उनका प्रत्यक्ष सहवास प्राप्त हुआ था । यह मूल चरित्र पाँच भागों में है और उसमें श्रीरामकृप्ण की अन्तिम वीमारी तक्र का वृत्तान्त है। उसके वाद के आठ महीनों का वृत्तान्त. तथा उनकी दीमारी का हाल उसमें नहीं हे । मराठी चरित्र में ( जिसका प्रस्तुत पुस्तक अनुवाद हैं ) यह वृत्तान्त संक्षिप्त रूप से श्रीरामचन्द्र दत्त ऋृत श्रीरामकृष्ण-चरित्र और एम्‌? के कथामृत से लिया गया हैं । उसी प्रकार स्वामी शारदानन्दजी कृत जीवन-चरित्र में जो वातें नहीं आई हें वे अन्य पुस्तकों से ले ली गई हैं; (आधारभूत पुस्तकों की सूची देखिए) तथापि ऐसी बातें बहुत कम हैं और मराठी जीवन-चरित्र का पूण आधार स्वामी शारदानन्दजी कृत चरित्र दी है। इस चरित्र में स्थान स्थान पर जो शास्त्रीय विपयों का प्रतिपादन मिलता हैं उससे पाठकों को स्वामी शारदानन्दजी के अधिकार वी महत्ता स्पष्ट दो जायगी। स्वामी शारदानन्दजी के चरित्र की भाषा अत्यन्त मनोहर हैँ। उनकी भाषा का प्रवाह किसी विशाल नदी के शान्त, घीर, गम्भीर प्रवाह के समान पाठक के मन को तल्लीन कर देता दे । प्रथम तो भ्रीरामकृप्ण का चरित्र ही अत्यन्त अद्भुत और रमणीय हूँ और फिर उसमें स्वामीजी की अन्दर भाषा और उनके विषय-प्रतिपादन की कुक्नलता का संयोग । इस ब्रिवेणी संगम में मज्जन करके पाठक अपनी देह की भौ उधि भूल जाति हें । यह जीवन-चरित्र पाठकों को कत्ता झुचेगा, यह अभी नहीं कद्दा जा सकता; तथापि इसे पदुकर




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