श्रीमद्वाल्मीकि -रामायण | Shreenadwalmiki - Ramayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
593
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १२ )
भेज कर. विश्वामित्र का अन्य ऋषियों को बुलवाना ।
बसिष्ठपुओं का तथा सहदोदय नामक ऋषि फा घुलाने पर न
आना । अतः विश्वामित्र का उनको शाप देना ।
साठवाँ सगं ४०३--४१०
त्रिशंकु के यज्ञ का बणन। यज्ञ भाग लेने के लिए
उस यज्ञ में बुलाने पर भी देवताओं कान आना। इस
पर क्रुद्ध हो विश्वामित्र का अपने तपोवत्न से त्रिशंकु
को सदेह स्वर्ग भेजना। किन्तु इन्द्रादि देवताओं को
त्रिशंकु का सदेह स्वर्ग में आना भला न लगने पर, त्रिशंकु
का प्रथिवी पर गिरना और “बचाइये बचाइये” कह कर
चित्लाना | तव क्रोध में भर विश्वामिनत्र का नयी सृष्टि
रचने में प्रचृत्त होना । तव घबड़ा कर देवताओं का विश्वा-
मित्र जी को मनाना | त्रिशंकु सदा आकाश में सुख पूर्वक
रहें, देवताओं के यद्द स्वीकार कर लेने पर, नयी सृष्टि रचना
से विश्वामित्र का निवृत्त होना ।
इकसठवाँ सगे ४१०--४१५ |
दक्षिण दिशा में तप में विन्न होने पर विश्वामित्र जी
का उस दिशा को छोड़ पश्चिम में पुप्कर में जाकर
उप्रतप करना | इस वीच में अम्बरीप राज़ा का यज्ञ
करना | उनके यज्ञपशु का इन्द्र द्वारा चुराया जाना। यज्ञ
पूरा करने के लि् पुरोहित का अम्बरीष से किसी यज्ञीय
नरपशु को लाने का अनुरोध करना | गौओं के लालच
में आ ऋचीक का अपने बिचले पुत्र शुनःशेप को राजा
के द्वाथ बेचना। शुन-शेप कोले राजा अम्बरीष का
प्रस्थान करना ।
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