बुद्ध - चर्य्या | Buddha charyya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारतमें बौद्ध-घर्मका उत्थान और पतन । बे घोर गृद-क पैदा कर चुके थे। शतादिदयंसि श्रद्धाल राजाओं और धनिकोंने दीया चढ़कर मं भर मंदिरोंमें अपार धन-राझि जमा. कर दी थी | इसी समय पश्चिमसे सुसख- मानोंने इमला किया । उन्होंने संदिरोंकी भपार-सम्पचिकों ही नहीं लूटा बल्कि भगणिते दिव्य शक्तियोंकि माठिक देव-सूर्तियोंको भी चकनाचूर कर दिया । तांघ्रिक छोग मंत्र घखि सौर पुरश्ररणका प्रयोग करते दी रह गये किन्तु उससे समुसर्मानोंका कुछ नहीं बिगड़ा । तेरवीं झाताब्दीके आरम्भ होते होते तुर्कीने समस्त उत्तरी भारतकों अपने हाथमें कर लिया । बिद्दारके पाठवंधी राजाने राज्य-रक्षाके लिये उदन्त पुरी में एक तांब्रिक विहार बनाया था उसे मुहम्मद विच-वस्तियारने सिफ॑ दो सौ घुड़सवारोंसे जीत लिया | नाठन्दाकी अदुभुत दाक्तिवाली तारा टुकवे-टुकदे करके फेंक दी गयी । नालंदा भौर विक्रमशिकाके सेकड़ों तांघ्रिक भिक्षु त्तवारकें घाट उतार दिये गये। यद्यपि इस युद्धमें अपार जन-घनकी हानि हुईं अपार अन्थ-राशि भस्मशाद्‌ हुई सैकड़ों करा कौशलक उत्क़ट नमूने नपटकर दिये गये तो भी इससे एक फायदा हुआ--छोगोंका जादूका स्वप्न टूट गया | बहुत दिनोंसे बात चली आती है कि संकराचार्यके दी प्रतापसे बौद्ध भारतसे निकारे गये । शंकरने बोद्धोंको शास्त्रार्थसे दी नहीं परास्त किया यदिक उनकी भाज्ञासे राजा सुधन्वा भादिने -इजारों बौद्धांको समुद्रमें डुबो और तछवारके घाट उत्तारकर उनका संहार किया 1 यह कथायें सिर्फ दन्तकथायें ही नहीं हैं बिक इनका सम्बन्ध भानन्द्गिरि सौर माघवाचार्य की शंकर-दिग्विजय पुस्तकोंसे है इसीलिये संस्कृतज्ञ विद्वानू तथा दूसरे शिक्षित जन भी इनपर चिश्वास करते हैं इन्हें ऐतिदासिक तथ्य समझते हैं । कुछ छोग इससे शं करपर धार्मिक-भसहिप्णुताका करूंक लगता देखकर इसे साननेसे आानाकानी करते हैं किस्तु यदि यह सत्य है तो उसका अपलाप न करना ही उचित है | झंकरके कालके विष्यमें विवाद है। कुछ छोग उन्हें विफ्रमंका समकालीन मानते हैं। 86 ० 5ाधाद्वा के कर्ता तथा पुराने ढंगके पण्डितोंका यही मत है । लेकिन इतिहासश इसे नहीं मानते । बह कहते हैं-- चूँकि दांकरके शारीरक-भाष्यपर चघाचस्पति मिधने भामती रोका लिखी है और बाचस्पति मिश्रका समय इंसाकी नवीं झताइदी उनके भपने अन्थसे ही निश्चित है इसलिये शंकरका समय नरवीं शतताब्दीसे पू् तो दो सकता है किन्तु शंकर कुमारिरु-भट्टसे पूर्वके नहीं दो सकते हैं । छुमारिठ बौद्ध नैयायिक र्मंकीर्तिके समकालीन थे जो सातवीं श्ताब्दीमें हुए थे इसखिये धंकर सातवीं धात्ताब्दीके पहलेके भी नहीं हो सकते । शंकर कुमारिठकें समकाठीन ये भौर दोनोंने एक दूसरेका साक्षाव्कार किया था यह बात हमें दिग्विजय से मालूम होती है । इनमें अग्तिम बातमें जहाँ तक उनके संयॉका सम्बन्ध है कोई पुष्टि नहीं मिठती । स्वेनू-चाड_ सातवीं घताददी के भू किसी ऐसे प्रबल बौद्ध विरोधी दास्ार्थी भर शख्रार्थीका पता नहीं सिखता | यदि होता तो 4. आसेतोरातुपाराद्रवीद्धिनावूद्धयाठकम्‌ । न इंति यः स इन्तब्यों खत्यानित्यन्वशान्द्पः ॥ साधवीय दां० दि १ ९३ ॥ कुमारिक -भटपादाजुसारि-राजेन सुधन्वना भमंद्विपो दौद्धा विनाशिता + शं० दिल दिंडिमटीका 9 ९७ ॥




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