दयानंद के मूल सिद्धान्त की हानि | Dayanand Ke Mool Siddhant Ki Hani

Dayanand Ke Mool Siddhant Ki Hoti by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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है { १३ ) गया करि उसके माने हुये वेद वेद नहों गब उसफा चह छि- द्धान्त फिं जो २ घेद में करने मोर छोड़ने की शिक्षा फी'है उस २ का दम यथावत्‌ करना छोड़ना मानते हैं भौर घद् उ- पदेश कि येदों के प्रमाण से सब काम किया फरों सबंधा भिष्फल हुआ क्योकि जिन १९६३१ शाखा भीर ब्राह्मण अथो तथा उपनिषदों फो सम्पुणं ऋषि सुनि यर समस्त विद्वान वेद्‌ भानते चरे भायै दँ उनको भी दयानन्द जीने कद्‌ माना हौ नहीं भौर जिन चार पुस्तर्कोको उन्होने वेद माना घे वस्तुतः ११३१ शाखान्तगंत चारशाजा ही हैं ठथा उन्हींके कौर लेखों से उन का चेद न दोना सम्यक सिद्ध है ज्ञद कि उनके मता घसार पेदी का पता द्वो नहीं तो वेदों के प्रमाण से सब काम किया करों यद्द कथन घन्ध्यापुत्र के विधाद्द के सहश है है दयानन्दियो | आप फो धर्म्माचमे के निर्णय में केवल वेद्‌ ही अमाण हैं और उनका पता नहों जब तक भापके मंतानुसांर प्ररु प्रमाण पूर्वक घेदों का पता न= लगे तव चकत आप रोग 'मंतचिपयक वात्तों में किसी के सनन्‍्मुख किसोी प्रकार जिहान ' हिलावें किन्तु सर्वथा मौन दोज्ञायें वेद क्या पदार्थ है प्रथम इसका सम्यक्‌ पतः लगाये अथवा पूर्व विदानो के मतानु- सार ११३१ शाखा तथा ब्रह्मण ग्रंथों के वेद सानिये और सामी जी के सिद्धान्व के उनका জধাত কবির আন .मिथ्या गौर त्यांज्य ज्ञानिये यदि आप वल्ात्कार डक चार शाखाभों दी के दस दुराप्नद भौर ,पक्षपात स्ते चेद्‌ मरने




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