आदिकाल की भूमिका | Aadikal Ki Bhoomika
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
172
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ज्पृभश्नंशा भोर हिन्दी , ',* १६९
अ्वहद्ठ
अ्रपश्रंश के बाद की और आधुनिक श्रायंभापा के पूर्व की भाषा इन दोनों
भाषाओं के वीच की भाषा है। अर्थात् इसमें न तो पूरी तरह अ्रपश्रंश का रूप
दृष्टिगत होता है और न आधुनिक भाषाओश्रों का रूप ही पूरी तरह इस समय
उभरकर सामने श्राया है वीच का यह काल भाषा की दृष्टि से संक्रान्तिकाल
है, जब भाषा में अ्रपश्रंश की प्रवत्तियाँ घट रही थीं और आधुनिक भाषाजों का
रूप स्पष्ट होता जा रहा था। 'सनेसरासक', “प्राकृत पैगलम्, “उवित-व्यक्ति-
प्रकरण', व्ण रत्नाकर, 'कीत्तिलता', ज्ञानेश्वरी' आदि की भाषा इसी प्रकार
की है। सूक्ष्मता से इस भाषा का निरीक्षण करने पर पता चलता है कि इस
संक्रान्तिकाल की भाषा में प्रारम्भ में अपभ्रंश की प्रवृत्तियाँ अधिक हैं किन्तु समय
के साथ-साथ क्रमशः उनमें कमी आ जाती है और आधुनिक मापश्रोंकी
प्रवृत्तियाँ बढ़ जाती हैं ।
इस काल की मापा के लिएपरवर्ती अपशञ्न॑ श, पुरानी हिन्दी, देशी माषा आदि
विविध नामों का प्रयोग किया गया है। किन्तु कुछ लोगों के अनुसार अ्वह॒ट्ठ
नाम अधिक उपयुक्त है।
अवहट्ठ शब्द संस्कृत के ्रपधंश' का विकसित रूप है। ज्योतिरेश्वर
ठाकुर, विद्यापति, वंशीधर भ्रादि ने भ्रपश्नंश के लिए अव्हट्ठ शब्द का प्रयोग किया
है। किन्तु इस सम्बन्ध में एक रोचक बात यह है कि श्रपश्नंश के लिए अलग-
अलग समयों में श्रलग-श्रलग शब्दों का प्रयोग किया गया है। ऐतिहासिक दृष्टि
से देखने पर पता चलता है कि :
१, संस्कृत के आलंकारिकों ने प्रपश्नंश भापा के लिए सर्वेत्र 'अपश्रंश' शव्द
का ही प्रयोग किया है ।
२. प्राकृत के कवियों ने अपभ्रंश के स्थान पर “अ्रवहंस' शब्द का प्रयोग
किया है ।
३. अपश्रंश के प्रारम्मिक कवियों (पुष्पदन्त आदि) ने भी अवहंस शब्द
का ही प्रयोग किया है।
४. परवर्ती कवियों, प्रव्द्रहमान, दंशीधर ( प्राकृत पंगलम की टीका) और
विद्यापति आदि, ने अपभ्रंश को अवहृदठ कहा हैं !
इससे स्पष्ट होता है कि अपश्रंश शब्द का प्रयोग-वेविध्य उस भाषा के
विकास के साथ जुड़ा हुआ है। अनुमानतः पचे के कविय ने श्रवहट्ठ' शव्द का
प्रयोग जान-वूक्रकर किया है, जो संमवतः अपश्रंश से श्रवहट्ठ' के अंतर को
बताने के लिए किया गया है। “कहना चाहें तो कह सकते हैं कि वह प्रयोग जान-
ভুত हुआ और अपश्मप्ट की भी श्रष्टता (भपाशास्व कौ शब्दावली में
विकास) दिखाने के लिए किया गया 1 यानी, इस शब्दं के मूल मं परिनिष्ठित
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