भगवत दर्शन खंड ६३ | Bhagwat Darshan Khand 63

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Bhagwat Darshan Khand 63  by श्री प्रभुद्त्तजी ब्रह्मचारी - Shri Prabhudattji Brahmachari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका: क ‡ “रानी घडी देरव रोती रदी फिर उसे स्मरण आया তিব্বত मंजरी षडा नीतिनिषुण दै; चह परम विश्वासपात्र है वह अवश्य ही कोई उचित उपाय सुम्पावेगा । यद्‌ सोचकर उसने विद्द्लको बुलाया र एकान्ते পুমা ভগবান কযা भरी वाणी में अपना संभी दुःख सुनाया । रु महारानी को इस प्रकार अश्रु बदति श्रौर रोते देखकर विदश्च का हृदय भर आया। उसे नत्र मे भी अँ चरागये । उसने आँसू पीछकर . अत्यंत ही गम्भीरता से कद्दा-महारानी ! आप चिन्ता न करें मेरे. ऊपर विश्वासकरे । मैंने आपका नमक खाया है।मैं अपनो पूरी शक्तिसे कुमार की रक्षा का प्रयन्न करूँगा। इमें अब देर न करनी चादिय। युधाजित आते ही सर्वप्रथम मारको दी हत्या करेगा । उसको रोकने की किसी में सामथ्यं नही, । काशीमे मेरे एक सुबाहु नामके मामा रहते है, फिसी प्रकार हम काशी पहुँच जायंता थे.,निश्चय ही कुमार को रक्षा करेगे । किसी प्रकार अभी राजमहल से निकलकर घोर बनमें जाकर चिप जायें, बहाँसे फिर रातों रात काशी भाग चलेंगे। काशी पहुँचने पर तो हम सर्वया 'भयसे रह्वित निरापद हो जायेंगे। आप अब ৬. देरी न करें रथ मंगाकर तुरंत ही राजकुमारको लेकर मेरे साथ भाग चलें [? .., . महारानी ने; विंदल्ल की सम्मतिको तुरन्त स्वीकार किया । अपना निजी 'रथ मेंगवाया शीघता.के साथ उसमें जितना द्रव्य वस्त्राभूषण रखी ` उतना रखकर, चलने लगी । फिर उन्होंने सोचा यदि मेरे भागने की बात किसी पर बिदित दो गयी तो तुरंत प्रकड़वालो जाऊँगी यद्द सोचकर वे लीलावती के पास गयीं और रोती रोठी बोलों--बद्विन.! झुना मेरे पिता भी-परलोकवासी दो गये । अभी तक हम पति के दुःख से - दी दुखी,थी 1 अवमेर पि ५,




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