श्रावकाचार संग्रह भाग १ | Shavarkachar Sangrah Prat I

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Shavarkachar Sangrah Prat I by हीरालाल सिद्धान्तालंकार - Heeralal Siddhantalankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विपय-सूची १५ सम्यक्त्वके आठ अंग और उनमें प्रसिद्ध पुरुषोंका निर्देश च क ४२८ दयत आदि सप्त व्यसनोका विस्तृत्त विवेचन च की ४२९, नरकगतिके दु:खोंका विस्तृत्त वर्णन ५ ~ ४३६ तिय॑चगति और मनुष्यगतिके दुःखोंका वर्णन ৫ এ ४४० देवगत्तिके दुःखोका वर्णन ४४२ दशान प्रतिमाका वर्णन इ ब्रत प्रतिमाका वर्णन রর पात्र, दात्ता, देय और दानविधिका वर्णन ४२४९ दानसे फलका वर्णन বারাটা सल्लेखनाका वर्णन ४५१ सामायिक और प्रोषध प्रतिमाका वर्णन ८५१ सचित्तत्याग आदि छ्‌ प्रत्तिमाभोका स्वरूप-निरूपण ४५३ उरिष्टत्याग प्रतिमाका विस्तृत वर्णन अर हा] টা राजिभोजनके दोषोंका वर्णन ने न ४५६ श्रावकके कुछ अन्य कतर्व्योका निर्देश ४५६ विनयका वर्णन ४५७ देयावृत्त्यका वर्णन ४५९ कायक्ले तपका वर्णन ४६१ पंचमी ब्रतका वर्णन पि ने ४६१ रोहिणी, अश्विनी, आदि अनेक ब्रतोका वर्णन प्रः ४ इर नाम ओर स्थापना पूजनका वर्णन ५ ~^ ४६४ प्रतिमा-प्रतिष्ठाका विस्तृत वर्णन ~ উঃ ४५ द्रव्य, क्षेत्र काल और भावपूजाका वर्णन ने চা ५४6 पिण्डस्थ ध्यानका वर्णन এ 4 छर पदस्थ ध्यानका वर्णन ने রী চি रूपस्थ ओर रूपातीत ध्यानका वर्णन न ^^ प अष्टदरनयसे जिनपूजन करनेवाला स्वरग-सुख भोगकर ओर वहसि चयकर मनुष्य होकर कायं क्षयकर मोक्ष प्राप्त करता है, इसका विस्तृत वर्णन प ग्रन्थकारकी प्रशस्ति -- ५८९ « सावयधम्प्दोहा ५८३-५०५ मंगलाचरण ओर श्रावकधर्मंके कथनको प्रतिज्ञा ০০০ ই मनुष्य भवकी दुरूमता और देव-गुरुका स्वरूप नल সঃ ই दर्शन प्रत्तिमाका स्वरूप ने प अष्टम गुण-पालनका उपदेश्च ও ভর सप्त व्यसनोके दोष वृताकर उनके त्यागनेका उपदेश ~ स | ४८९६




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