वृहदालोचना | Vrahadalochana
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
94
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
मुनि सुमन कुमार - Muni Suman Kumar
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लाला रणजीत सिंह - Lala Ranajeet Singh
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ८ )
चन्द् : दोहा
कथं विगाना काठ के, सर्च किया बहु नाम ।
जब मुद्दत पूरी हुवे, देनां पड़सी दाम ॥५॥
बिन दीयां छूटे वहीं, यह निश्चय कर মালি।
हँस हँसके वयुं खरचीए, दाम নিহানা আল 11
संसार-स्वभाव :
डाभ भ्रणी जलबिदुवा, सुख-विषयत को चाव ।
भव सागर दुःख जल भरा, यह् संसार सुभाव ॥७॥
जीव हिसा करता थका, लागै मिष्ट श्रज्ञान |
ज्ञानी इम जाने सही, चिषं भिलियो पकवान ॥८॥।
काम-भोग प्यारा लगे, फल किपाक समान ।
मीठी खाज खुजावर्ता, पाछे दुःख को खान ॥६॥
जप-तप-सयम दोहिलो, श्रौषध कड़वी जान ।
सुख कारण पीछे घणो, निश्चय पद निर्वाण ॥१ ०॥
गुण्य-पाप :
चढ़ उत्तंग वहाँ से पतन, शिखर नहीं वो कृप ।
जिस सुख अन्दर दुःख बसे, सो सुख भी दुःख रूप ॥११॥
जब लग जिसके पुण्य का, पहोंचे नहीं करार ।
तब लग उसको माफ है, भ्रवगुण करो हजार ॥१२॥
पुण्य क्षीण जब होत है, उदय होत है पाप ।
- दाके वत की लाकड़ी, प्रजलित आपहि आप [1१३॥
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