वृहदालोचना | Vrahadalochana

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मुनि सुमन कुमार - Muni Suman Kumar

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लाला रणजीत सिंह - Lala Ranajeet Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ८ ) चन्द्‌ : दोहा कथं विगाना काठ के, सर्च किया बहु नाम । जब मुद्दत पूरी हुवे, देनां पड़सी दाम ॥५॥ बिन दीयां छूटे वहीं, यह निश्चय कर মালি। हँस हँसके वयुं खरचीए, दाम নিহানা আল 11 संसार-स्वभाव : डाभ भ्रणी जलबिदुवा, सुख-विषयत को चाव । भव सागर दुःख जल भरा, यह्‌ संसार सुभाव ॥७॥ जीव हिसा करता थका, लागै मिष्ट श्रज्ञान | ज्ञानी इम जाने सही, चिषं भिलियो पकवान ॥८॥। काम-भोग प्यारा लगे, फल किपाक समान । मीठी खाज खुजावर्ता, पाछे दुःख को खान ॥६॥ जप-तप-सयम दोहिलो, श्रौषध कड़वी जान । सुख कारण पीछे घणो, निश्चय पद निर्वाण ॥१ ०॥ गुण्य-पाप : चढ़ उत्तंग वहाँ से पतन, शिखर नहीं वो कृप । जिस सुख अन्दर दुःख बसे, सो सुख भी दुःख रूप ॥११॥ जब लग जिसके पुण्य का, पहोंचे नहीं करार । तब लग उसको माफ है, भ्रवगुण करो हजार ॥१२॥ पुण्य क्षीण जब होत है, उदय होत है पाप । - दाके वत की लाकड़ी, प्रजलित आपहि आप [1१३॥




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