डेविड हयूम का दर्शन | Devid Huyum Ka Darshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जान मीमासा 11 स्पप्ड क्या जा रूकता है । परन्तु उदि हमारे मनमे र्भी सस्कार एक-दूसरे से पृथक नटे नो उनके जावार्‌ पर कर्न कन्तु के जटिल प्रत्यय की रचना नही कर सक्ते ऐसी स्थिति ने हमे कसी की वस्तु कय जान प्राप्त नही हो सकता | इससे यह न्पस्ट के कि ज्ञान-आध्ति के लिए चस्कारो और अत्ययो का सयठित तथा एक-दूसरे से नम्वढ होना अनिवार्यं हं 1 परन्तु नस्कारो तथा प्रत्ययों का बह सगठन अथवा पारन्परिक सम्बन्ध केवल सयोग पर ही आधारित नही हो सकता, इसके लिये कुछ विद्येप नियमो का होना छावध्यक हू । ह्यूम ने प्रत्ययो मे परन्पर सम्बन्ध स्थापित करन चान तीन.निचमो का उल्लेख निया है जिन्हेवे श्युणोः की सना देते ह) ये नियम माहञ्क , “दे -काल सम्बन्वी सामीप्य तथा (कारण जौर कार्य” 15 इन्ही नियमो के फनम्वटप विभिन्‍न प्रत्ययो के परस्पर सम्बन्ध स्थापित होता हैं और नियमित रूप से हमारे जटिल प्रत्नयो में एक जैसे सरल प्रत्यय सग्रठित होते है । उदाहरणा्थं जब हम किसी व्यक्ति का चित्र देखते है तो साहब्य के नियम के कारण हमे उस व्यक्ति का स्मरण हो आता हे । यदि व्यक्ति और उसके चित्र मे समानता न होती हो तो हम चित्र कौ टेव्वक्र उनस व्यक्ति को स्‍मन्‍नण नहीं कर सकते ये । इसी प्रकार जब कोई दो घटनाएग्क् ही न्यान पर अथवा एक ही समय मे घटित होती है तो उनमे से कसी एकता छ्टना की पुनरदाबृत्ति होने पर हमे तुरन्त उससे सम्बद्ध दूसरी घटना याद आा जानी ह# ॥ पदि हम किन्‍टी दो व्यक्तियों को एक ही स्थान पर अथवा एक ही समय मे सर्व साथ-साथ नहनते हुए देखते रहे है तो उनमे से किसी एक को देखकर हमे तुरन्त इनसरे का स्मरण हो जाता है और ऐसा देश-काल के सामीष्य के कारण ही होता हैँ । इसी प्रकार बद्दि हम किन्‍ही दो घटनाओं को सदैव कारण ओर कार्य के লন म देते रहे हैं तो उनमे से कसी एक घटना को देखकर हमे तत्काल दूसरी घटना की याद जा जाती हे । उदाहरण के लिए यदि हम किसी व्यक्ति के शरीर पर घाव ठेन्वन हूं तो हमारे দল म तुरन्त उन घाव के फलस्वस्प होने वाली पीडा का विचार उन्पन्न होता हु, क्योकि हमने घाव और पीछा को सर्देव कारण-कार्य के रूप मे ही चेला ई 1 सक्षेप मे इन्टी तीन नियमो अथवा इनमे से क्सिी एक नियम के कारण ही লাই দল সি एक अत्यय से अन्य भ्रत्यय उत्पन्न होते है, अत्त इन्हे ह्यूम ने प्रत्ययो के লালন के नियमः कटा है! इनमे से कारण-कार्य का नियम सर्वाधिक महत्वपूर्ण है जिस पर हम आगे विस्तारपूर्वक विचार करेगे । यहां यद उल्लेखनीय है कि दयुम व जनुनार साच्ण्य, देश-काल सम्बन्धी सामीप्य तथा कारण-कार्य के नियम के फल- न्वन्प वस्तुओ से प्रत्यक्ष रूप से ही नही परोक्ष रूप से भी सम्बन्ध हो सकता है। अपने इस मत को स्पप्ट करते हुए उन्होने लिखा है कि “हमारी कल्पना मे कोई दो वस्तुए केवल इसीलिए परस्पर सम्बद्ध नही होती कि वे एक-दूसरे के सब तथा निक्ट है और उनमे से एक इूसरी वस्तु का कारण है, अपितु वे मध्यवर्ती किसी ऐसी | ८6) देलिये 'ए ट्रिलाडज़ आफ ह्यूमन नेचर” पू० 138




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