हनुमान लीलामृत - जीवन और शिक्षाएं | Hanuman Amrit Jeevan Aur Shikshayen

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Hanuman Amrit Jeevan Aur Shikshayen by शिवनाथ जी दुबे - Shivnath Ji Dubey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पास जाकर पुछा--अज्जवा देवि ! तुम इतता कठोर तप फिसलिये कर रही हो 2? अञ्जना ने महामुनि के चरणों में प्रणस कर अत्यन्त विनज्ञता से उत्तर विया--ुनीश्वर ! केसरी नामक श्रेष्ठ बानर चे मेरे पित्ता से सुझे माँग । उन्होने सुझे उत्तकी सेवा से सप्तपित क्र दिया । में अपने पतिदेव के साथ बहुत दिनों से अत्यन्त सुखपुर्वक रह रही हूँ; किस्तु अब तक मुझें कोई संतान नही हुई ५ इसो कारण सैने किष्किन्धा से अनेक व्रतं, उपवास तथा तप किये, परतु मुझे पुत्रकी प्राश्ति चही हो सकी । अतएब दुःखी होकर मैंने पुत्न के लिए पुत्तः तपश्चर्या प्रारस्भ को है। विप्रवर (आप कषपापूर्वक मुझे यशस्वी पुत्र प्राप्त होने का उपाय बताइये ।' 9 तपोधन तद्ध धुनि तै अञ्जना से कहा-दुम भृषरभाचल (वेद्धुटाचल ) पर जाकर फ्रमवात वेडूटेश्बर के भुक्ति-मुवित- दाथक चरणयो से प्रणम करो । फिर वहां से कुच ही दुर आकाश मद्भुष नामके तीर्ण मे जाकर स्नान कर लो। तदनस्तर उसका शुभ जल पीकर वायुदेव को प्र्तन्न करो । इससे तुम्हें देवता, হা, भनुष्यो से अजय तथा अस्न-शस्न्रों से भी अवध्य पुत्र प्राप्त होगा ( है देनी भ्रन्जना ने महासुनि के चरणो में श्रद्धा पूर्वक प्रणाम किया । तदनन्‍्तर उन्होने चृषभाचल की यात्रा की | वहाँ पहुँच कर भगवान वेद्धुटेस्वर के चरणों की त्यन्त भवितत पूर्वक वन्दना को । इसके बाद उन्होने आकाशगज्भा नामक तीर्थ से स्वान कर उसके परम पाबत जलका पान्त किया । फिर उसके तटपर तोर्थ की ओर मुह करके वायुदेवता की प्रसन्नता क লিউ जत्यच्त सबम पूर्वक तपश्चरण ग्रारस्त्त किया । अञ्जना अरयम्त शी हमान लीलामृत जीवन আহ शिक्षावे/ १६




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