हनुमान लीलामृत - जीवन और शिक्षाएं | Hanuman Amrit Jeevan Aur Shikshayen
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
344
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पास जाकर पुछा--अज्जवा देवि ! तुम इतता कठोर तप
फिसलिये कर रही हो 2?
अञ्जना ने महामुनि के चरणों में प्रणस कर अत्यन्त
विनज्ञता से उत्तर विया--ुनीश्वर ! केसरी नामक श्रेष्ठ
बानर चे मेरे पित्ता से सुझे माँग । उन्होने सुझे उत्तकी सेवा से
सप्तपित क्र दिया । में अपने पतिदेव के साथ बहुत दिनों से
अत्यन्त सुखपुर्वक रह रही हूँ; किस्तु अब तक मुझें कोई संतान
नही हुई ५ इसो कारण सैने किष्किन्धा से अनेक व्रतं, उपवास
तथा तप किये, परतु मुझे पुत्रकी प्राश्ति चही हो सकी । अतएब
दुःखी होकर मैंने पुत्न के लिए पुत्तः तपश्चर्या प्रारस्भ को है।
विप्रवर (आप कषपापूर्वक मुझे यशस्वी पुत्र प्राप्त होने का उपाय
बताइये ।' 9
तपोधन तद्ध धुनि तै अञ्जना से कहा-दुम भृषरभाचल
(वेद्धुटाचल ) पर जाकर फ्रमवात वेडूटेश्बर के भुक्ति-मुवित-
दाथक चरणयो से प्रणम करो । फिर वहां से कुच ही दुर आकाश
मद्भुष नामके तीर्ण मे जाकर स्नान कर लो। तदनस्तर उसका
शुभ जल पीकर वायुदेव को प्र्तन्न करो । इससे तुम्हें देवता,
হা, भनुष्यो से अजय तथा अस्न-शस्न्रों से भी अवध्य पुत्र
प्राप्त होगा ( है
देनी भ्रन्जना ने महासुनि के चरणो में श्रद्धा पूर्वक प्रणाम
किया । तदनन््तर उन्होने चृषभाचल की यात्रा की | वहाँ पहुँच
कर भगवान वेद्धुटेस्वर के चरणों की त्यन्त भवितत पूर्वक वन्दना
को । इसके बाद उन्होने आकाशगज्भा नामक तीर्थ से स्वान
कर उसके परम पाबत जलका पान्त किया । फिर उसके तटपर
तोर्थ की ओर मुह करके वायुदेवता की प्रसन्नता क লিউ
जत्यच्त सबम पूर्वक तपश्चरण ग्रारस्त्त किया । अञ्जना अरयम्त
शी हमान लीलामृत जीवन আহ शिक्षावे/ १६
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