श्री भागवत दर्शन (भाग ४६) | Shri Bhagwat Darshan [ Khand - 46 ]

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Shri Bhagwat Darshan [ Khand - 46 ] by श्रीप्रभुदत्तजी ब्रह्मचारी - Shree Prabhu Duttji Brhmachari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विरह-वेदना १९ छउद्धवजीने सचमुच छुम्म-छम्मकी ध्वनि सुनी और ऐसा लगा कोई माखन खा रहा है। माखन देते-देते गोपी मूछित होकर गिर पड़ी । दूसरी कद्दती--“उद्धव ! वे दानलीलाकी बातें इतनी मीठी हैं कि तुम्हें हम युग-युग सुनाती रहें तो भी पूरी नहीं होनेकी। उन्हें न जाने क्‍यों हमे छेड़नेमें बड़ा आनन्द आता था और हमें भी न जाने क्‍यों उनकी छेड़छाड़ शहदसे भी भीठी और' नवनीतसे भी मृदुल लगती यीं । धर्मकी बात यह है कि हम दधि बचने नहीं जाती थीं श्यामसुन्दरकी छेड़छाड़के लियेह्ी जातों थीं। एक दिन हम कई साथ जा रही थीं, पीछेसे आ्आाकर किसीने मेरी ओद्नी खींची। में तो सावधान थी ही । अब में सिरपर रखे दद्दीको तो भूल गयी, तुरन्त बिना पीछे देखे मैंने उनका पढुका पकड़ा मेरी दहीकी मटकी फटसे फूट गयी 1 उद्धवजीने मटकी पूटनेका शब्द्‌ मी सुना श्रौर गोपी मानों पदुका पकड़े पड़ ह । इसी दृशामें उते मूर्विताचस्थानें निहारा । कोई कहती-““उद्धव ! इसी कुडपर सुमे सबसे पिः श्यामसुन्दर मिले थे ।” यह कहते-कहते वह तन्मय हो गयी । ` `` कोई कहती--“ऊधो ! इसी कद्म्बके व्ृत्तोंसे पत्त तोड़कर वे दद्दी खाते थे। कदम्ब भी उन्हें पत्ते न देकर बने बनाये दोंने देते थे ।” उद्धवजीने ऊपर दृष्टि डाली तो कदम्बके समस्त पत्ते दोनेके आकारके हैं, नीचे दृष्ठि डाली तो गोपीको मूर्छित पड़े देखा । कोई कहती--“उद्धव ! कुछ कहनेकी बात नहीं है ' यह वही निश्चतनिकुज है; यह वही फूली-फूली' मालती है ।'**““इसके आगे गोपी छुछ न कह सकी उसका हृदयभर आया और मालती की लताके ही ऊपर मूर्छित होकर निर गयी { ` ` , ` इस प्रकार छे महीने रहकर उद्धवजीने देखा कि गोपिकाओं




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