श्री भागवत दर्शन (खंड ८८ ) | Shri Bhagwat Darshan [ Khand - 88 ]

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Shri Bhagwat Darshan [ Khand - 88 ] by श्रीप्रभुदत्तजी ब्रह्मचारी - Shree Prabhu Duttji Brhmachari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(६ (३ | €^ ~ दिया आ डा छ ० ৬. = लों दंड दियो जाय उसे सहनं करना? थदि ठंड स्वरूप भ रुपयों का दंड दिया जाय तो रुपया नहीं देना । (६) तिलक स्व॒राज्य कोप के लिये एक करोड़ रुपया एक- লিল करना । (७ ) राष्ट्रीय महासभा ( आ० इ० कांग्रेस ) के एक करोड सदस्य बढ़ाना । (८) सरकारी नौकरी, बकांलत तथा और भी सरकार को सहयोग देने वाले समस्त कार्या को त्याग देना । इस प्रकार यह्‌ 'असहयोग श्रान्दोतन की सुख्य-युस्य घातं थी । देश की श्वतन्त्रता के नाम पर की इई गोधीजीं की घोपणा पर अनेकों सरकारी नौकरों ने नोकरियों छोड़ दी,बहुत से चकोलों ने चकालत छोड़ दी | असंख्यों क्षात्रों ने विद्यालय,महाविद्यालय तथा विश्वविद्यालय छोड़ दिये । उस समय त्याग की कैसी आवना आ गयी थी । बड़े-बड़े धनिक जो सर्वदा सुस्त से जीवन व्यतीत करते ये, जिनका जीवन ही भोग विलासमय था, वे स्वंस्वं त्यागकर सादी पदिनकर, चनों पर निवौद्‌ करते हुए गोवि-गोवि घूमने लगे 1 उन दिनों पंडित मोतीलाल जी नेहरू और पडित जवाहरलाल जी नेहरू के त्याग की सर्वत्र बड़ी ख्याति थी । पंडित मोतीलाल जी हमारे भया के ख्यात नामा वकील माने जाते थे । वकालत से उनको कितनी श्राय यी, दस्का यथार्थ अनुमान कोई कर ही नहीं सकता था \ उनका आनन्द भवन प्रयाग में दशनीय स्थान साना जाता था, दूर-दूर से लोग आनन्द भवन को देखने आया करते थे, उनके विज्ञाससय जीवन की अनन्त कथायें म्रचत्षित थी रम तो यहाँ तक सुनने थे, कि उनके कपड़े प्ररंस की राजधानी पेरिस से धुलकर आते थे । यहाँ के धोंबी उनके कपडे घो ही नही सकते थे। किन्तु ये कूठी बातें थीं। पं० जवाहरलाल जी ने उनका «4




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