श्री भागवत दर्शन | Shree Bhagwat Darshan

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Shree Bhagwat Darshan  by श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी - Shri Prabhudutt Brahmachari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(८ १३ )) `“ दोह्य व्च समान कठोर अति, सुमन सरिस सुकुमार । १०० महत पुरुष मन सम विसम बुघ जन एरहु विषार्‌ ॥ जीवन के अन्तिम दिनों में मेर उनका विशेष संपर्क नहाँ रहा। नहीं तो दम दूर रहने पर भी वर्ष में कई बार मिलते भौर साय-साय रहते । - जिन दिन हम गंगा किनारे की यात्रा में बाँध पहुँचे, उस , समय वे होशियारपुर या कहीं न्यत्र चले गये थे । रामेश्वर ने । बाँध बचने का पूरा दृत्तान्त , बताया | उनके बाबा लाला कुन्दन ललालजी सभी साधुओं का स्वागत सत्कार करते थे, किन्तु मुमसे कनका अत्यन्त स्नेह था। एक दो दिनों तक दम गाँव में रहे। जाला कुन्दनलालजी के तीन पुत्र थे। लाला किशोरी लाल, सला सुरारीलाल् और लाला बाबूलाल । बैसे तो हम से पूरे परिवार के ही लोग आत्मीयता रखते हैँ किन्तु लाज्ा बाबूलाल जी अत्यन्त ही स्नेह रखते हैँ | अब न काला कुन्दनलाल दी रहे, न किशोरीलाल, न मुरारोलाल ही रहे। रामेश्वर भी चल बसे | श्रीहरिबात्रा भी पधार गये। चनके रायः सभी साथी संगी पापंद भी चल बसे । अब केवल वृद्धावस्या के कष्टां को स्ते हष लाला बावूलालजी दी सांस ले रहे हैँ। काल की कैसी कुटिल कीड़ा है। जिनके साथ अनेक सुखद प्रसंग आये थे अप उन सबकी मीठी-मीठी स्टृतियाँ ही शेष रह गयी हैं| “कालस्य कुटिला गति; 1? ४ हाँ, तो दम गंगा किनारे-किनारे चज्न दिये । आगे, उस पार अवन्तिका देवी दैं। वहाँ नवरात्रियों में, शिवरात्रि पर बढ़ा मेक्षा.. ड्ोता है, इस लोग पद्दाँ फे दर्शन करते हुए फिर रूखी ' ',




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