वल्लभ संग्रह प्रथम भाग | Vallabha Sangrah Vol. - I

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१, ५ टमी काया सत &, मनसा भय किसान । पाप पुण्य दोड बीज हैं) बुध सो लुने निदान ॥ जो सांचो घन होई तौ. तीर्थ मनी सादिः पर क्तरनी पेट में, कहा. शोत है नहाहि॥ द्विच | पाय प्रशुताई कुछ कीजिये भलाई ह॒हां, नांछि थिरताई वन सानिय कविनिके । लन अपजस रहिजात बीच भ्रमित्वेके, मुल॒क खजाना ये न साथ गए किनके ॥| आार गहीपालनकी गिनती गिनान कोन; रावणने च्छयये विक्री वश जिनके । व्यापदार वाफर्‌ चमृपति चवर दार, मंदिर मतंग ये तमाशे चार दिन के || सदया | मातु पिता युवर्ती सुत बन्धव लागत है सबको अति प्यारो। लोक कुठम्ब खरो ट्वित राखत होइ नहीं हमतें कहुं न्यायो | देह सनेह तहां लग जानहु घोलत हैं मुख शब्द डचारो। खुन्दर चैतन शक्ति गह तव वेगि कटै घर वार निकारो | देर सनेह न छात উ नर्‌ जानत है धिर ই यद्‌ देषा! छी जत जात घंट दिनही दिन दीसत है घटकों नित উহা ॥ काल अचानक आइ गद्ढे कर ढाह गिराइ करें तनु खेहा। सुन्दर जानि यहै निहंच धरि एक निरंजन सूं. करि नेहा ॥ शेर--फूल तो दो दिन वहारे जां फिजां दिखला गये । वाय उन गुंचों पे है ज्यों विन खिले मुझो गये ॥ লা रहा है न कोई यहां रही है न कोई यह, जाने सव कोई पे ने थाने मोह परिगे । हाथी श्रौ घोड़े जोड़े छोड़े सब ठोर २, भोंनन में गाड़े भूरि भांडे ते विसरिगे । कहे छविनाथ रघुनाथ के भजन विन, ऐसे री विचारे जनम कोटिन निसरिगे । जग वाले जोर वाले-जाहिर जरव वाले,जोश वाले जालिम चिताकी आग जरिगे। शेर--यह चमन यों ही रहैगा वासवां ओर जानवर | . अपनी अपनी बोलियां खव बोलकर उड़ जांयगे। दोहा-तेस मेरा क्यो करैः तेरा है नहिं कोय। -वासा है त्षण एकको, कोन भरोसा होय ॥ „24 जार ৫ ^}




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