न्यायदीपिका | Nyayadeepika

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Nyayadeepika by धर्मभूषण यति - Dharma Bhushan Yati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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७ _जो वास्तविक लक्षण तो नहीं हो, परन्तु लक्षणसरीखा मालूम पड़े, उसको रक्षणाभास कहते हे । उसके तीन मेद हैं-- अव्याप्त, अतिव्याप्त, ओर असम्भवी । जो रक्षयके एक देशमें रहे, उसको अव्याप्त कहते हे । जैसे गोका लक्षण शावडेयत्व । क्योंकि यह शावलेयत्व यद्यपि गौको छोड़कर दूसरी जगह नहीं रहता, तथापि छक्ष्यमूत गोमातञरमं भी न रहकर कुछ खास गौओंम ही रहता है। इसलिये रक्ष्यके एक देशमें ही रहनेवाले गोके इस शावलेयत्व रूक्षणकों अव्याप्तनामक रक्ष- णाभास कहते है । इसी प्रकार दूसरी जगह भी समझना | जो लक्ष्यमात्रमे रहकर अलक्ष्यमे भी रहे, उसको अतिव्याप्त लक्षण कहते है 1 जैसे गौका रक्षण पद्यत्व । यह रक्षण गोमा- अम रहते इण लक्ष्यसे भिन्न भेंस वगेरहमें भी रहता है। इस- लिये इसको अतिव्याप्त लक्षण कहते है । जिसका रूक्ष्यमे रहना प्रत्यक्षादि प्रमाणसे सर्वथा बाधित हो, उसको भसम्भवी कते दै । जसे मयुष्यका रक्षण सींग । यह मचुष्यका लक्षण किसी भी मदुष्यमे धरित नहीं होता इसलिये इस लक्षणको असम्भवी लक्षण कहते हे । यहां पर रक्ष्यके एक देरामं रहनेवाला अव्याप्त लक्षण असा- धारणधर्मखरूप तो दहै परन्तु रुक्ष्यभूत सम्पूण गायोंको अन्य वस्तुंसि जदा करनेवाला ( भ्याचतक ) नदीं हे । इस- स्यि भतिवादीका कहा इथ र्षण ठीक नहीं है किन्तु हमने जो सिद्धान्त लक्षण कदा है चदी टीक है ओर उसीके कथनको छक्षणनिदेश कते हे । विरुद्धनानायुक्तिमरावस्यदौ्वस्यावधारणाय प्रवतेमानो वि- चारः परीक्षा | सा खल्वे चेदेवं स्यादेर्वं॑चेदेवं বাহিত प्रवतते। प्रमाणनययोरप्युदेशः सूत्र एव कृतः । रक्षणमिदानीं निर्देष्टव्यं परीक्षा च यथोचिलयं भविष्यति । उद्देशानुसारेण




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