न्यायदीपिका | Nyayadeepika
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about धर्मभूषण यति - Dharma Bhushan Yati
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)७
_जो वास्तविक लक्षण तो नहीं हो, परन्तु लक्षणसरीखा मालूम
पड़े, उसको रक्षणाभास कहते हे । उसके तीन मेद हैं--
अव्याप्त, अतिव्याप्त, ओर असम्भवी । जो रक्षयके एक देशमें
रहे, उसको अव्याप्त कहते हे । जैसे गोका लक्षण शावडेयत्व ।
क्योंकि यह शावलेयत्व यद्यपि गौको छोड़कर दूसरी जगह
नहीं रहता, तथापि छक्ष्यमूत गोमातञरमं भी न रहकर कुछ
खास गौओंम ही रहता है। इसलिये रक्ष्यके एक देशमें ही
रहनेवाले गोके इस शावलेयत्व रूक्षणकों अव्याप्तनामक रक्ष-
णाभास कहते है । इसी प्रकार दूसरी जगह भी समझना |
जो लक्ष्यमात्रमे रहकर अलक्ष्यमे भी रहे, उसको अतिव्याप्त
लक्षण कहते है 1 जैसे गौका रक्षण पद्यत्व । यह रक्षण गोमा-
अम रहते इण लक्ष्यसे भिन्न भेंस वगेरहमें भी रहता है। इस-
लिये इसको अतिव्याप्त लक्षण कहते है ।
जिसका रूक्ष्यमे रहना प्रत्यक्षादि प्रमाणसे सर्वथा बाधित
हो, उसको भसम्भवी कते दै । जसे मयुष्यका रक्षण सींग ।
यह मचुष्यका लक्षण किसी भी मदुष्यमे धरित नहीं होता
इसलिये इस लक्षणको असम्भवी लक्षण कहते हे ।
यहां पर रक्ष्यके एक देरामं रहनेवाला अव्याप्त लक्षण असा-
धारणधर्मखरूप तो दहै परन्तु रुक्ष्यभूत सम्पूण गायोंको
अन्य वस्तुंसि जदा करनेवाला ( भ्याचतक ) नदीं हे । इस-
स्यि भतिवादीका कहा इथ र्षण ठीक नहीं है किन्तु हमने
जो सिद्धान्त लक्षण कदा है चदी टीक है ओर उसीके कथनको
छक्षणनिदेश कते हे ।
विरुद्धनानायुक्तिमरावस्यदौ्वस्यावधारणाय प्रवतेमानो वि-
चारः परीक्षा | सा खल्वे चेदेवं स्यादेर्वं॑चेदेवं বাহিত
प्रवतते। प्रमाणनययोरप्युदेशः सूत्र एव कृतः । रक्षणमिदानीं
निर्देष्टव्यं परीक्षा च यथोचिलयं भविष्यति । उद्देशानुसारेण
User Reviews
No Reviews | Add Yours...