श्वेताम्बर मत समीक्षा | Shwetambar Mat Samiksha

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Shwetambar Mat Samiksha by अजितकुमार - Ajitkumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(२) ९ जैन समाज इस समय तीन संग्रदायोर्मि विमक्त ( बटा हुआ ) ই | दिगम्बर, श्वेताग्बर-ओर-+स्थानव.वासी | इनमेंसे श्वेताभ्वर तथा स्थानकवासी পল্লজানইঈ भीत्तर सिद्धान्तकी दृष्टिस़ि कुछ विशेष भेद नहीं हैं। स्थूछ भेद केवक यह हैं कि श्रेताम्वर सम्प्रदाय मूर्तिपूजक है अतएव जिनमंदिर, जिनप्रतिमा तथा तीर्थक्षेत्रोंकी मानता ई, पूजता है | : किन्तु स्थानकवासी सशज जो कि ल्गमग ३ ० «दर्ष पहले इ्वेताम्वर सम्पर- दायते प्रीर इभा है जिनमंदिर, जिनप्रतिमा, और तीथ्थक्षेत्रतो नतो मानता है ओर न पूजता ही है, वह केवल गुरु और शाखको मानता है | किन्तु दिगबर सम्प्रदायके साथ इवेताम्बर तथा स्थानक्रवासी सम्पदा्योका सिद्धान्तकी दृष्टिमे बहुत भारी मतभेद है। इसलिये उसकी परीक्षा करना जरूरी है । | सचे देवका स्वरू, ` घमेक़ी सत्यता, भसत्मताकी खोज, करनेके लिये तीन बातें जाच हेनी आवश्यक हैं; देव, शास्त्र और गुरू। जिस धर्मक प्रवर्तक देव, उस देवकां यहा हुआ जझ्ाख तथा श्स दर्मका प्रचार फरनेवालय, गृहस्थ पुरुर्षों द्वारा पृजनीय गुरु सत्य साबित द्वो वह धर्म सत्य है और जिस के ये तीनों पदार्थ अत्तत्य सात्रित हाँ वह धर्म झुठा है। इस कारण यहवांपर इन तीनों जैन सम्प्रदार्योके माने हुए देव, शासत्र, गुरूकी परीक्षा करते हैं | उनमें से प्रभम दी इस प्रथम परिच्छेदमें देवकां स्वरूप परी- क्षार्थं प्रपर कते है । । ५ दिगम्बर,इवेतांवर, स्थानकवासी ये तीनों संग्रदाय अर्हत भौर सिद्धकों अपना उपास्य ( उपासना करने योग्य ) देव मानते हैं | तथा ५ आट कर्मौको नष्ट कफे शुद्ध दक्चाको पादु इए जो परमात्मा लोक- शि्षरपर विराजमान हैं वे सिद्ध भगवान हैं ओर जिन्होंने ज्ञानावरण; - दर्शनावरण मोहनीय और अंतराय इन चा९ घाती कर्मोंका नाश करके अनैतज्ञान, अनंतद्शन, भनंतसुख और अनंतवलछ यह _अन॑तचतुष्टय पा डिया है ऐसे जीडन्पुक्तिदशाप्रास परमात्याकों अईन्त कहते हैं !! यहांतक भी तीनों सम्प्रदाय निर्विवाद रूपसे स्वीकार करते हैं. |: `




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