सुदर्शन सेठ | Sudarshan Seth
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
86
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)লুলহা परिच्छेद ६
दारमें ठाना आरस्भ कर दिया। जों पुरुष जयगतकों कौ
शिक्षा देनेके लिये जन्म श्रहण करते हैं, ये अवस्थामें छोटे होनेपर
भी, उनका अन्त:करण सद् उच्च और अतिविशाल होता है ।
संसारक प्रचलित नियमकरे अनु्लार सदशेन जव युवाच-
स्थाको प्राप्त हुआ, तब उसके पिताने उसका विचाह एक कुलीन
सेठकी मनोरसा नामकी कन्याके साथ कर दिया । खुदशेन
आर मनोरमाके नाम जैसे एक ही तरहके थे, घैसे ही उनकी
आत्माए भी मिलकर एक हो गयीं । वे दोनों खी-पुरुप
दाग्पत्य-धर्मफे जानने चाले थे। इसलिये थे सांसारिक व्यव-
टारमें कमी रसी भर भी नहीं चूकते थे और अन्य स्त्री-पुरुषोंके
लिये आदशे बन गये थे । पतिके मनके मुताबिक चछती ओर
उनकी प्रेमपात्री बनी हुई मनोरमा आहेत-अर्मेकी आराधना
क्रिया करती थ्री। बालकपनसे ही श्रद्धाका शुभ ओर दिव्य
संस्कार उसके मानस-श्षेत्रमें गा हुआ था। खुदशंनफे समा.
गमसे चद संस्कार आर भी दें द्ीप्यमान होकर उसके श्राविका-
धर्म-की पूृर्णताकी सचना दे रहा था। क्यों न हो ? जहाँ ऐसे
दग्पती हों, वह स्थान चाहें गाज़ाका महरू हो या पत्तोंकी बनी
ऋट्िया-- चहाँ सांसारिक खुछ और धार्मिक अभ्युद्य होना, कुछ
आश्चर्यकी बात थोड़े ही है? मनोरमाकी मनोहारिणी मर्यादा
आर अपनी व्यवहासुझलता तथा न्याय-निष्टाके कारण खुदशेन
अपनी जातिमें हो नहीं, सारे नगर और राजद्रवारमें भी दिन-दिन
अधिकाधिक सम्मानित होने लगा ।
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