निर्जरासार | Nirjrasaar
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
360
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६
दो प्रकारके हैं। व सम्रतिष्ठित तथा अग्रतिष्ठित ऐसे दो
प्रकार प्रत्यक जीव, इस प्रकारके तो स्थावर, तथा छटवां
भेद चस, एसे छह क्रायके £ प्रकार जीव. इनमे भी त्रस
के ५ भद दीन्द्रिय - त्रीन्द्रिय - चतुरिन्द्रिय - असैनी (मन
रहित) पंचेन्द्रिय व. मनसहित सेनीपंचेन्द्रिय, इस तरह
छह फायके १० मेद, तथा पांच इन्द्रिया (१) स्पशेने-
न्द्रिय-जिसके दारा दलका, मारी, चिकना, सूखा, ठंडा,
ग्म श्नादिका ज्ञान होता है (२) रसना अथवा जिहा
इन्द्रिय-जिसके दारा खडा, मीठा आदि ५ प्रकारके
रका ज्ञान होता है (३) प्राण इन्द्रिय अरथौत नातिका
जिसके द्वारा सुगंध दुर्गंधका ज्ञान होता है (४) नेत्र
इन्द्रिय-जिसके द्वारा हरा पीला लारऊ आदि वर्णोंका ज्ञान
होता है (५) कर्णान्द्रय अथात कान-जिसके द्वारा आवाज
का ज्ञान दोता है | छट्टा मन जिसके द्वारा सोचने सम-
भनेका काये होता है, इस अकार सब मिलकर १२
प्रकारकी अविरति होती है। अथोत् ऊपर कहे गये ६
कायके जीवों की दया नहीं करना ओर ५ इन्द्रियां तथा
मनको अपने २ विपयोंसे पराझमुख नहीं करना सो
१२ अविरति हैं ।
अब २५ क॒पायों का वर्णन करते हैं:-
मोहनीय कमे के २ सेद हैं (१) द्शनमोहनीय
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