निर्जरासार | Nirjrasaar

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Nirjrasaar by सूर्यसागरजी महाराज - Suryasagarji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ दो प्रकारके हैं। व सम्रतिष्ठित तथा अग्रतिष्ठित ऐसे दो प्रकार प्रत्यक जीव, इस प्रकारके तो स्थावर, तथा छटवां भेद चस, एसे छह क्रायके £ प्रकार जीव. इनमे भी त्रस के ५ भद दीन्द्रिय - त्रीन्द्रिय - चतुरिन्द्रिय - असैनी (मन रहित) पंचेन्द्रिय व. मनसहित सेनीपंचेन्द्रिय, इस तरह छह फायके १० मेद, तथा पांच इन्द्रिया (१) स्पशेने- न्द्रिय-जिसके दारा दलका, मारी, चिकना, सूखा, ठंडा, ग्म श्नादिका ज्ञान होता है (२) रसना अथवा जिहा इन्द्रिय-जिसके दारा खडा, मीठा आदि ५ प्रकारके रका ज्ञान होता है (३) प्राण इन्द्रिय अरथौत नातिका जिसके द्वारा सुगंध दुर्गंधका ज्ञान होता है (४) नेत्र इन्द्रिय-जिसके द्वारा हरा पीला लारऊ आदि वर्णोंका ज्ञान होता है (५) कर्णान्द्रय अथात कान-जिसके द्वारा आवाज का ज्ञान दोता है | छट्टा मन जिसके द्वारा सोचने सम- भनेका काये होता है, इस अकार सब मिलकर १२ प्रकारकी अविरति होती है। अथोत्‌ ऊपर कहे गये ६ कायके जीवों की दया नहीं करना ओर ५ इन्द्रियां तथा मनको अपने २ विपयोंसे पराझमुख नहीं करना सो १२ अविरति हैं । अब २५ क॒पायों का वर्णन करते हैं:- मोहनीय कमे के २ सेद हैं (१) द्शनमोहनीय




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