किसानों का बिगुल | Kisano Ka Bigul
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
54
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)किसानों का पिशुल १५४
, रसिया.
बौहरे है गए देश छटेरा हम तो दीने गरदं मिलाय ।
न
वे जारि तो पखवारे लौं . घर पै लेतु फिराय ।
तब कहूँ बड़े मिजाजनु ते वे देखें निगाह उठाय ॥१॥बोहरे०
कम दें बंढुंदी लेदि निदेयी उलटो भाव लगाय ।
सरी-गरी नाहि हेदि सैली देहि एक ही भाय ॥२ ॥बौहरे०
पांच र्पैया द पचास को कागटु लै लिखवाय ।
मनमानी वे डौदी-दूनी व्याज लेत लिखवाय ॥ ˆ हरे०
ूखे-नंगे राति दिना,करि लेहिं जो फसल कमाय ।
लमः के से गन गिर बोहरे चारौ भोर ते आय ॥४। ।बौहरे०
राशि होत ही खरियान ही मे खबरी लेतु तुलाय ।
- भुस कांकस जे कछ न छोड़े ले जाहि सब ढुवाय ॥५।॥बौहरे०
पेट ब थि के बंरस दिना ते सब घरु रहो कमाय ।
,इतने हू दाने नहिं छोड़े एक दिना लें खाय ॥६॥बौहरे०
-फिरि हिसाव करिओने-पौने व्याज पैब्याज लगाय ।
| इतने जोरें सात जनम हू हम ना सकें चुकाय ॥३। ।লীহুই০
ले लूटा तो साद बने हैं 'निरमे! मौज उड़ाय ।
~ - श्लास्पवादः होहि भारत में तव सब माम परि जाय ॥८। [वौहरे०
१
User Reviews
No Reviews | Add Yours...