किसानों का बिगुल | Kisano Ka Bigul

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Kisano Ka Bigul by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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किसानों का पिशुल १५४ , रसिया. बौहरे है गए देश छटेरा हम तो दीने गरदं मिलाय । न वे जारि तो पखवारे लौं . घर पै लेतु फिराय । तब कहूँ बड़े मिजाजनु ते वे देखें निगाह उठाय ॥१॥बोहरे० कम दें बंढुंदी लेदि निदेयी उलटो भाव लगाय । सरी-गरी नाहि हेदि सैली देहि एक ही भाय ॥२ ॥बौहरे० पांच र्पैया द पचास को कागटु लै लिखवाय । मनमानी वे डौदी-दूनी व्याज लेत लिखवाय ॥ ˆ हरे० ूखे-नंगे राति दिना,करि लेहिं जो फसल कमाय । लमः के से गन गिर बोहरे चारौ भोर ते आय ॥४। ।बौहरे० राशि होत ही खरियान ही मे खबरी लेतु तुलाय । - भुस कांकस जे कछ न छोड़े ले जाहि सब ढुवाय ॥५।॥बौहरे० पेट ब थि के बंरस दिना ते सब घरु रहो कमाय । ,इतने हू दाने नहिं छोड़े एक दिना लें खाय ॥६॥बौहरे० -फिरि हिसाव करिओने-पौने व्याज पैब्याज लगाय । | इतने जोरें सात जनम हू हम ना सकें चुकाय ॥३। ।লীহুই০ ले लूटा तो साद बने हैं 'निरमे! मौज उड़ाय । ~ - श्लास्पवादः होहि भारत में तव सब माम परि जाय ॥८। [वौहरे० १




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