विचार पुष्पोद्यान | Vichar - Pushpodhyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
256
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १४५ )
ही सन्तष्ट रहते हैं । राल्य प्राप्ति या बनवास ही सुख का
मल कारण है ॥ ५२॥
कम का चरम उद्देश्य सझ लाभ अवश्य है, किन्तु
वह सुख क्षणस्थोयी या साधारण सुख नहीं है, वह
चिरस्थायी परम सुख है ओर कतेव्य कम करने से
ही बह सख्य मिलता है ॥ ५३ ॥
वह वडा सखी हे जिसे न तो गत कल
पर वेकली है ओर न आगत कल पर मन
चली है ॥ ५४ ॥
बिचार करने पर यही अनुभव होता है कि मनुष्य
की गति स्.ख (भोग) की ओर नही, किन्तु ज्ञान की
ओर है ॥ ५५४ ॥
जो सुख इन्द्रियों से मिलता है वह अपने ओर् पर
को बाधा पहुँचाने वाला, हमेशा न ठहरने वाला,
दीच बीच में नष्ट हो नाने बल्ला, कमं. बंध का
कारण तथा विषम होता है, इसलिये वह दुभ्ल
ही है ॥ ५६ ॥
अपने काय में जागृत रहने और यथाशंक्ति
उद्यम करते रहने से मनुष्य संतोष पा सकता
दे ॥ ५७ ॥ |
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