विचार पुष्पोद्यान | Vichar - Pushpodhyan

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Vichar - Pushpodhyan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १४५ ) ही सन्तष्ट रहते हैं । राल्य प्राप्ति या बनवास ही सुख का मल कारण है ॥ ५२॥ कम का चरम उद्देश्य सझ लाभ अवश्य है, किन्तु वह सुख क्षणस्थोयी या साधारण सुख नहीं है, वह चिरस्थायी परम सुख है ओर कतेव्य कम करने से ही बह सख्य मिलता है ॥ ५३ ॥ वह वडा सखी हे जिसे न तो गत कल पर वेकली है ओर न आगत कल पर मन चली है ॥ ५४ ॥ बिचार करने पर यही अनुभव होता है कि मनुष्य की गति स्‌.ख (भोग) की ओर नही, किन्तु ज्ञान की ओर है ॥ ५५४ ॥ जो सुख इन्द्रियों से मिलता है वह अपने ओर्‌ पर को बाधा पहुँचाने वाला, हमेशा न ठहरने वाला, दीच बीच में नष्ट हो नाने बल्ला, कमं. बंध का कारण तथा विषम होता है, इसलिये वह दुभ्ल ही है ॥ ५६ ॥ अपने काय में जागृत रहने और यथाशंक्ति उद्यम करते रहने से मनुष्य संतोष पा सकता दे ॥ ५७ ॥ |




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