नीति वाक्य माला | Neetivakyamala

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Neetivakyamala by मूलचंद - Moolchand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नीतिवाक्यम/ला । [९ मिलनेकी समावना हो, अथवा उनके परिचयसे प्रगट द्रव्य रम -होता हो, या कि्ती भी प्रकारका लाभ होता हो तो शायद ही ऐसा कोई मनुष्य होगा जो परोपकारका कार्य न करे। सचे सहृदय, ओर भविश्चय उदार पुरुष ही इतनी अधिक नेतिक उच्चता रखते दें ` कि भिस उच्चताके ही कारण वे किसी भी प्रकारकी कामना, या इच्छाके विन्ा केवल कतेव्यपालन करनेके लिये ही उत्तम कार्य परोपकार करते हैं | लीली ई० ए०० वेरी यह तो सर्वथा सत्य कि त्तम का, रमकी शक्ति और उप्ता विस्तार मनुष्यके स्वकीय श्रेष्ठ चारित्र पर निभर होता दे। स्मरण रखना चाहिये कि वचनकोशछतासे, दिखाऊ बुद्धिविक्रा- शसे, और चालाकीसे चारित्रके दोष छिपे नहीं रहते हैं । पेजेंट । हमको किस मार्गेपर चहुना चाहिये यह হন লাল हैं । हमारे निर्मल हृदयपट पर तेरी आज्ञाये चित्रित हैं । परंतु हे ' परमात्मा ! इप्तसे भी अधिक जआाशिष दे, हमें हमारे ज्ञानके अनु- सार काये करनेक्षी इच्छा दे, हमारी इच्छा भनुप्तार कार्य करनेकी - प्ररु शक्ति दे जर कषायं करनेक्े किमि फोडाद नेप रंगीन सुखद उद्देश दे । तेरी भावनासे हमें ज्ञान तो प्राप्त हुआ है परंतु हे प्रभो | उपडुक्त अन्य जपृणतायें हमको बहुत ही खटकती हैं। - ओर वह तुझसे मांगते हैं। जान हिकं वारर सप्तारकी उत्तम वस्तुभोंका थोडा बहुत उपमोग हमने स्वर्थे “किया है या नहीं ? यह प्रश्न हमारे लिये सौ वर्षके बाद নিভু




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