फांसी | Fansi

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Fansi by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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फाँसी अकस्मात हो गई--फाँसी तो हो ही नहीं सकती, हाँ, आजनन्‍्स कारावास--प़ेर, देखें क्या होता है ।” मैंने कहा-- क्या, कारागार में भाजन्म के लिए बन्दी नदी, उससे तो मौत ही घच्छी है।” हां, मौत भी अच्छी है। मैंने वाहर की भोर देखा! एक पक्षी डाल पर बेठ कर एक फर को ठुझरा रहा था। कितना आनन्दी जीव है वह ! में यदि वैसा ही एक पक्षी होता ! वैसा टी सुक्त ओर स्वाघीन होता ! जज उस समय सअपनी राय पढ़ रहे थे। मेरा ध्यान उस ओर नहीं था। जीवन और झुत्यु की बात तो मैं उस समय भूल ही गया था। सहसा कान মী জানা লাই ধারী? | सिर में पसीना भा गया। भाँखों के सामने काला पर्दा गिर पढ़ा । मैं उस कठघरे से टिक कर खड़ा हो गयां । शायद जज को कुछ दया आई उसने पूछा, “तरे कुछ दहना है !” कहने को तो बहुत कुछ था। परन्तु बात बढ़ाऋर फ़ायदा ही क्या था ? और ज़बान पर मानों तारे पद्‌ गये थे । दोनों हायों से मैंने अपने झुँद को ठाँप लिया 1 लोग शोर करते हुए विचार-गृह् के बाहर ज्ञा रहे ये | उनके पेरों १६




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