नवतत्व सार्थ | Navtatv Sarth

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Navatatva Sarth by श्री जालमसिंह -shree jalamsingh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इस पुस्तक के प्रकाशन में सहायक आदरशकुडम्ब का संक्षिप्त परिचय ~ (रद पीपला--जिला घीड (निञ्ञाम स्टेट ) में श्रोमान्‌ सेठ फॉंडीरासजी बोरा रहते थे। आप अठीव सरल प्रकृति के धर्मनिष्ठ ओर व्यवद्धार दक्ष पुरुष थे। आपने अपनी प्रामा- रिकता के घल पर पर्याप्त सम्पत्ति का उपाजन किया था। पूज्यपाद कविकुलभूपण श्री तिलोफऋषिजी स० के पास से आपने सम्यकध्व धारण किया था और पृज्यपाद के पाटवी शिष्यरत्न श्री रत्तऋषिजी म० के सत्संग से आपकी धरंभावना वृद्धिंगत हुई थी। आपको धार्मिक ग्रन्थों के घाचन करने फा विशेष शौक था, श्रोताओं के अन्तःकरण को आप आकर्षित कर लेते थे। ब्रत प्रत्याख्यान की तरफ आपकी अभिरुचि अधिक थी भौर स्वीकारे हुए चरो षो पालने में आप बहुत दी चुस्त रद्दते थे। आपको ज्योतिप-शासत्र का भी अच्छा ज्ञान था। पंडित- रत्न मुनि श्री आनन्दऋषिजी म० के दीक्षामुहूर्त का निर्णय करने कै जिए प्राप अपने भतीजे श्री सुङ्कन्ददासजी फो साथ लेकर मिरी से अहमदनगर गये और वहाँ शासत्र विशारद सुधावक श्रीमान्‌ किंसनद।सजी मुथा और ज्योतिर्विंदर पं० धोंडो- [ण]




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