मन की बात | Man Ki Baat

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Man Ki Baat by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सिद्धि पानेकी येएग्यता। १२ सिद्धि पाने कौ येभ्यता इन सिद्धियांके! प्राप्त करनेके लिए येोग्यताकी अपेक्षा हाती है! यह बात ते! अव सिद्ध हे! गयी कि हमारा सामाजिक, पारिचारिक आदि संवन्धका स्थिर रहना तथा इनकी स्थिरता दारा अपना कल्याण दाना इन्हीं सिद्धियां पर निर्भर है। अतएव इस वातकी ज़रूरत है कि इनके पानेकी योग्यता प्रात्त की जाय । प्रत्येक मज्ञुष्यके लिए यह आवश्यक है कि অহ अपनेके হজ বাহ वनावे, वह अपनी शक्तियांका इस प्रकार विकसित करे और विकसित होने दे, जिससे उसके लिए सिद्धि पानेका मार्ग सरल और सीधा हे। । इन सिद्धियांका पराप्त करनेकी योग्यता सावधानीखे प्राप्त करनी चाहिए । यह येग्यता पनी शक्तियेकि विकसित करनेसे, अपने ऊपर भरोसा करनेसे, मिलती है इस विषयमे आजकल दम तेर्गोक्ी धारणा विलङ्कुल विपरीत हा गयी ই। कुद लाग मचुरष्योकी श्रक्नताका हो हिंलोरा पीयते है, वे मयुष्यकी शक्तिके दारा किसी मी कार्यका : सिद्ध ইালা श्रच्छा नदीं समते । भरपूर জীব लगाकर बड़ी गम्भीरताके साथ युक्तियाँ सोचकर उस दलवाले मलुष्योकोा अयोाग्य ठदराते हैं। वे कहते है-- ८ भाग्यवन्तं मङ्ूयेया मा शरूयन्‌ मा च परिडितान्‌ । शराश्च कृतविद्याश्च वने सीदन्ति पाण्डवाः ॥* भाग्यवान्‌ पुत्र उत्पश्न करो, शर श्रौर परिडत नदी । पाण्डव श्र भी हैं और विद्धान्‌ भी हैं पर भाग्यवान्‌ नहीं है, इस कारण वे चन में भटक रहे हे। भाग्यवादी किसी भी काम की सिद्धि तथा श्रसिद्धिमे भाग्य चोर अमाम्य को लाकर जेड़ते हैं। कोई राजा है, कोई धनी है, দাই নিজানুপই, অন




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