मार्टिन लूथर | Martin Luther

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Martin Luther by ताराचरण अग्निहोत्री - Taracharan Agnihotri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ९३ ) च्च विघातो क्षो सनन करने बैठते तो साश्रस के अनेकं पादरी लोग उन से कते कोरे ईश्वर -चिन्तन में क्या ই? पहले अपनी दु/ल रोटी की चिन्ता करो। इन लोगोके वात्तोलाप भी तृच विचारोको लिये हुए होते थे | ये अपने शरोर को भछ्ती भाँति छुखो रखना चाहते थे। अब लूथर की जरा द्निचर्य्यों तो सुनिये। फालेज में कहां तो उन पठन पठन का उच्च काय्यं करना पडता थाप्नीरः कहा रव द्रवाजां खोलना, उसे बदु करना, फमरों का साफ करना, गिरला धोना झादि काम उन क्षेसुपुद्‌ थे। लघ हन कासो से लूथर को फुरसत मिलतो तो हुक्म दिया जाता कि “कन्धे पर चरो फोली * जब कभी गब- काशमा समय निकाल कर वह पढने बैठते तो आश्रभवासी - তলব कहते कि अजी पढने लिखने में क्या है । रोटी झअहा भरी सास और रुपया लाओ जिस से हमारे ञ,श्रस को लाभ पहुचे। परन्तु घन्‍्य है लूथर को ! उनकी घस्सें- पिपासा ऐसो थी कि वह इन लोगो का भी कहना सास जाते और कट भोख सागने चल देते । वह आश्रम में दिन रात देशवर-भजन करते थे । बाइबिल जो कि रक्तित रहने के लिये एक लोहे को जंजीर से बांच दो गदे थी लूथर उसे खूब पढते रहते थे। त्रत भी घह खूब करते थे । एकत वार बह चार दिनि तक्र बराबर नत रक्खं रहे ्रीर




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