भारतीय सहकारिता आन्दोलन | Bhartiya Sahkarita Andolan

Bhartiya Sahkarita Andolan by श्री शंकरसहाय सक्सेना - Sri Shankarsahay Saksena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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है सहकारिता के सिद्धान्त दे प्रसेक श्रार्थिक दलचल में सहकारिता के सिद्धान्तों का उपयोग किया जा सकता है | सहकारिता के सिद्धान्त को पूर्णतया सम्॒भने के लिये यह आवश्यक हैं कि हम सहकारी समितियों तथा आधुनिक श्रौद्योगिक सस्थाश्रों का मेद समझ लें। मान लो कि कुछ मोची श्रपनी आर्थिक स्थिति का सुधारने की दृष्टि से, अ्रपनी थोड़ी- योड़ी पूजी को लेकः एक सङ्गठन मे सम्मिलित हिते ह त्रौर निश्चय करते हैं कि वे सम्मिलित रूप में जूते का व्यवसाय करंगे; समिति के कार्य का सचालन करने मे प्रत्येक सदस्य करा समान अधिकार हो, श्रौर वाषिक लाभ सदस्यों की पू जो के अनुपात में न बांठा जाकर, सदस्यों की जूतों की उत्पत्ति के अनुपात में बॉगा जावे, तो समिति को सहकारी उत्पादक समिति कहेगे | सहकारी उत्पादक समितियों तथा मिश्रित पू जी वाली कम्पनियों में यही भेद है कि एक तो मनुष्यों का सघ है और दूसरा पूँजी का। मिश्रित पूंजो वाली कम्पनियों में कार्य-सअचालन का अधिकार तथा लाभ, हिस्सेदारों को पूंजी के अनुपात मे धे मिलता है | उत्पादक सहकारी समितियों के सगठन में मजदूर पूंजी को किराये पर लेकर, धन्‍्धे की जोखिम उठाते हैं, ऊिंठ पूंजी वाली कम्पनियों मे हिस्सेदार स्वयं कार्य न करके मजदूरों को नौकर रखते हैँ और घन्घे की जोखिम उठाते है । उत्पादक समितिया पूजी ॐ लिये उचित सूद देती हैं औरलाभ आपस में बाठ लेती हैं; किन्तु मिश्रित पूंजी वाली कम्पनियों मे निश्चि मजदूरी देकर मज़दूर रखे जाते हैं ओर लाभ हिस्सेदारो में पू जी के अनुपात में পাত दिया जाता है | सहकारी समितियों में पूंजी को ग्रधिक महत्व नहीं दिया जाता । उसको सम्पत्ति उत्पन्न करने के लिये. एक साधन मात्र समा जता है । यही कारण है कि तप्तिति के प्रत्येक सदस्य को केवल एक वोट” {मत) मिलता दै, उषका खमिति के कार्थ-सथ्चालन मे उतना ही श्रधिकार होता है, जितना कि किसी दूसरे सदस्य का । परन्तु मिश्रित पू जी वाली कंपनियों में पूं जी का हो सर्वोच्च स्थान होता है, धम्धे का




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