आज का भारतीय साहित्य | Aaj Ka Bhartiya Sahitya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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असमिया ११ पत्रिका के भ्रास-पासं सब नये श्रच्छे लेखक जमा हो गए हं, जैसे वे एक परिवार के सदस्य हो । क्योकिं इन तरुण कवियो मे कई लोग साहित्य को राजनीतिक प्रौर सामाजिक वाद-विवाद तथा अभ्रराजकतापृर्ण और भ्रव्यवस्थित रूप में प्रचार का माध्यम मानते है, श्रत उनके पद्च पत्र- कारिता के स्तर से ऊपर नहीं उठ पाए। भआ्राधुनिक भ्रसमिया कविता में सबसे खेदजनक स्थिति यह है कि पुराने कवियो ने प्राय लिखना बन्द कर दिया है, और तरुण कवि श्रभी प्रयोगावस्था मे ही हैं। अभी असमिया में सच्चे अर्थो मे, नई कविता का जन्म होना वाकी है। नाटकं नाटक और रगमच दोनो क्षेत्रो मे असमिया कौ परम्परा वडी ही समृद्ध रही है । भ्रकिया नाट (जो कि मध्ययुगीन नाट्य-रचना थी) भ्रभी भी गाँवों में लोकप्रिय मनोरजन के नाते श्रपना प्रभावे कायम रखे हुए है। परन्तु श्राधुनिक श्रथों मे नाटक पश्चिम से हो झआाया है। असमिया मे पद्चिमी ढग के सबसे पुराने नाटककार गृणाभिराम वरुआ, हेमचन्द्र बरुआ और रुद्रराम बरदले हे। इस कला-हप का पहला सुविक- सित उदाहरण हमे लक्ष्मीनाथ बेजबरुआा और पद्मनाथ गोहाँई बरुआ में मिलता है। बेजबरुभा के नाटकों में देश-भक्ति की भावना सबसे प्रधान थी। 'चक्रध्वज सिह' मे उन्होने श्रसम के इतिहास के एक गौरव- पूर्ण अ्रध्याय का चित्रण किया है। यह नाटक श्राहोम राजा चक्रध्वजसिहं (१६६३-१६६९) के राज्य पर आधारित है। उनके राज्य-काल में झसम पर बार-बार मुस्लिम झ्राक्रमण हुए और लचित वरफूकन के सुभोग्य नेतृत्व मे आक्रामको को मार भगाया ओर पूरी तरह हराया । 'बेलि-मार' (सूर्यास्त), जिसमे कि असम पर बर्मा के आक्रमण (१८१६) की कहानी है, न केवल तत्कालीन घटनाओं को चित्रित करता है, अपितु उसमे उस समय के श्राहोम-राज-दरबारो की उस विलास-नजंर हासो- स्मूखता की भी गध है, जिसके कारण असम को अपनी स्वतन्त्रता




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