वर्जित प्रदेश | Varjit Pardesh

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Varjit Pardesh by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सशी कल्पना ६ स স্পাইসি পা পাতাল পপ পলিকি পল करते है । एक समय आधा पेट चावल खाकर--बहुधा वह भी नहीं । जाओ और देखों मानवता का भीषण ताण्डव-नृत्य ! रात्रि का समय हो चला था । नगर में सवत्र व्लैक- आउट का साम्राज्य था। एक बड़े मकान की ओर नरेन्द्र चला । सीढ़ी के पास पहुँचने पर उसे मालूम हुआ कि कोई उसके पीछे-पीछे आ रहा है। उसने सावधानी से घृमकर देखा तो एक क्षीण॒काय वृद्ध पुरुष दाँत निकाले उसके आगे हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया । नरेन्द्र ने कुछ भय और विस्मय के साथ पूछा--“क्या चाहते हो ९” क्षीण स्वर में वह बोला--“अज्ञे बाबू, आज दू दिन ओके आमि किछु खाई नी | शुधू एकद्ू भात चाई--दया करे आमार बाड़ी ते चौलून...कि बोलवों आपना के...बढ़ो लज्जार “विषय. . .एकठे चमत्कार मेये-छेले आचे...जदि ओर संगे एकटू अलाप करे...!” नरेन्द्र उस कै साथ दो लिया। एक छोटी-सी कोठरी मे उसने पाव रखा । लालटेन की धीमी रोशनी मेँ उसने देखा कि कमरे के एक कोने मे एक पन्‍्द्रह-सोलद वषे की गोरी-सी लड़की सिकुड़ी बेठी है । उसके प्रवेश करते दी वह जरा सेंमल कर बैठ गई । वृद्ध ने अवसर देखा और चुपचाप खखिसक गया । नरेन्द्र ने किवाड़ बन्द किये और वही झमीन- पर শত




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