जैन इतिहास की पूर्व पीठिका और हमारा अभ्युत्थान | Jain Itihas Ki Purv Pithika Aur Humara Abhyutthan

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Jain Itihas Ki Purv Pithika Aur Humara Abhyutthan by हीरालाल जैन - Heeralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जैन इतिहासकी पूर्व-पीठिका [५ হা खास छद खात दजार व पूर्वकी मानवीय सम्थताके प्रमाण मिले हैं। चीन देशकी सभ्यता भी इतनी दी व इससे अधिक प्राचीन सिद्ध होती दै) अमेरिका देश पुरातत्व शोधके सम्बंधर्भ जो ख़दाईका काम छुआ है उल्लका भी यही फल निकला है। दाल ही में भारतवर्षके पंजाब और सिन्य प्रदे्तीके £ दर्पा ' खीर ‹ मोयनजोडसे * नामक स्यार्नोपर झ़दाईसे जो प्राचीन ध्व॑सावरोप मिले है चे भी लास आठ दस हजार चं पूर्वके अनुमान किये जाते हैँ ये सव प्रमाण भी इमं मलुप्यके प्रारस्सिक इतिहासके छुछ भी समीप नहीं पहंचति । वे केव यही सिद्ध करते है कि उतने प्राचीब-क्षाछम भी मनुप्यने अपार उन्नति करली थी, ऐसी उन्नति जिसके छिये उन्द हजार लाखों चपौका सपय रगा दोगा । अव चीन, मिश्र, खाख्िया, इंडिया, अमेरिका, किसी (र भी देखिये, द्रतिदासक्तार ईसासि आढ आठ হু হুল हजार वप पूथधकी मानवीय सम्पतताक्रा ভষ্টুজ विश्वास के साथ करते हैं। जो समय कुछ काछ पहले मनुप्यकी गर्भावसथाका समझा जता या, चह अव उदके गर्भक्ता नहीं, वचपनका भी नहीं, भरौढ कारकः सिद्ध होता है. । जित জল दोती जाती दे उत्तवी दी अधिक मानवीय सम्यताकी प्राचीनता सिद्ध होती जाती दहै। कहां है अब मानवीय सम्यताका प्रातः- काल ? इससे ते प्राचीच रोमन दमरे समसामयिक प्रतीत होते है, यूनानका वण-काछ कटका दी सम्ग्न पड़ता है। मिश्रके श॒ुम्मठकारों और हममे केवल थोड़िखे दिनोंका दी अन्तर पड़ा प्रतीत होता दै। मनुष्यकी प्रथपोखत्तिका अध्याय आधु- निर इत्तिहाल दीसे उड़ गया है । ऐसी अवस्थाम जैन पुराणकार




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