विद्यापति पदावली | Vidhyapati Padawali
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
548
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १३ )
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उक्त पंक्तियों में प्रथम पंक्ति का पाठ तो ठीक है, फेवल अर्थ में अशुद्धि है; किन्तु
-दूसरी पक्ति का ही पाठ अशुद्ध है। इसी से अर्थ में भी अशुद्धि हो गई है | शुद्ध पाठ इस
प्रकार है--
दाहिन पवन यह से कैसे जुवति सद्द
करे कवलित জন্তু ङ्ग |
गेल परान आस दए राखए
दस नखे चिप জুন ॥
परिप्दू-पदावली, पद्-सं० १६४
अ्र्थ--दक्षिण वायु वह रही है। युवती कैसे उतका सहन कर सकती है ? वह
वायु उसके अंग की आस वना री है}
(विरहिणी) गये हुए. प्राण को आशा देकर रख रही है और दस नखों से सर्प
लिखती दै। (अर्थात्, सर्प दक्षिण पवन को पी लेगा. तो उसके प्राण बच जायेंगे ।)
नेपाल-पदावली की पाण्डुलिपि मे कुछ अक्षर ऐसे अस्पष्ट हो गये हैं, जो अव्तक पढ़े
नहीं जा सके थे | वहुत परिश्रम के साथ अधिकराश ऐसे स्थलों का पाढोद्धार परिषद्-
पदावली में किया गया है। उदाहरण-स्वरूप निम्नलिखित पद पर हकपात कीजिए--
लगेन्द्रनाथ गुप्त का पाठ--
सोदे कुल मति रति कुलमति नारि |
बॉके दरशने चुल्ल सुरारि
डचितहु चोक्नइते आचे अवधान |
ससय मेललहु तन्दिक परान ॥
सुन्दरि कि कददव क्हइते लान ।
मोर मल्ला से परह सनो वाने ॥
थावर द्म सनहिं अनुसान।
सवहिक विषय तोहर दश्च भान ॥
पद् 9০৪
मित्र-मजूमदार का पाठ--
लोहे इल मपि रति তি নাহি
वाह दरखने युलल सुरार 11
उचितहु वोजदत श्वे श्रवधान ।
संसय मेलतह तन्हिक परान ॥
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