विद्यापति पदावली | Vidhyapati Padawali

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
1757, Vidhyapati Padawali by भुवनेश्वरनाथ मिश्र 'माधव ' Bhuvneshwernath Mishr 'Madhav '

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about भुवनेश्वरनाथ मिश्र 'माधव ' Bhuvneshwernath Mishr 'Madhav '

Add Infomation AboutBhuvneshwernath MishrMadhav

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( १३ ) পুগ5 116, ৮886 18 8175865 6০06, 8105 2508208 600০085 909 8850 0 10708 £ [26 85678 88 2£ 1 889 (8 0125705 पा चर 699৮. 06৪. ৪0819 ঘা उक्त पंक्तियों में प्रथम पंक्ति का पाठ तो ठीक है, फेवल अर्थ में अशुद्धि है; किन्तु -दूसरी पक्ति का ही पाठ अशुद्ध है। इसी से अर्थ में भी अशुद्धि हो गई है | शुद्ध पाठ इस प्रकार है-- दाहिन पवन यह से कैसे जुवति सद्द करे कवलित জন্তু ङ्ग | गेल परान आस दए राखए दस नखे चिप জুন ॥ परिप्दू-पदावली, पद्‌-सं० १६४ अ्र्थ--दक्षिण वायु वह रही है। युवती कैसे उतका सहन कर सकती है ? वह वायु उसके अंग की आस वना री है} (विरहिणी) गये हुए. प्राण को आशा देकर रख रही है और दस नखों से सर्प लिखती दै। (अर्थात्‌, सर्प दक्षिण पवन को पी लेगा. तो उसके प्राण बच जायेंगे ।) नेपाल-पदावली की पाण्डुलिपि मे कुछ अक्षर ऐसे अस्पष्ट हो गये हैं, जो अव्तक पढ़े नहीं जा सके थे | वहुत परिश्रम के साथ अधिकराश ऐसे स्थलों का पाढोद्धार परिषद्‌- पदावली में किया गया है। उदाहरण-स्वरूप निम्नलिखित पद पर हकपात कीजिए-- लगेन्द्रनाथ गुप्त का पाठ-- सोदे कुल मति रति कुलमति नारि | बॉके दरशने चुल्ल सुरारि डचितहु चोक्नइते आचे अवधान | ससय मेललहु तन्दिक परान ॥ सुन्दरि कि कददव क्हइते लान । मोर मल्ला से परह सनो वाने ॥ थावर द्म सनहिं अनुसान। सवहिक विषय तोहर दश्च भान ॥ पद्‌ 9০৪ मित्र-मजूमदार का पाठ-- लोहे इल मपि रति তি নাহি वाह दरखने युलल सुरार 11 उचितहु वोजदत श्वे श्रवधान । संसय मेलतह तन्हिक परान ॥




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now