श्री श्री चैतन्य - चरितावली भाग - 3 | Shrishrichaitanya Charitavali Bhag - 3
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
420
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रीहरिः
महलाचरण
घंशीविभूषित॒कराश्नवनी रदाभात्
पीताम्बरादरुणविम्वफलाधरोष्टातू. 1
पूर्षान्दुसुन्दर्मुखादरविन्द्नेत्रात्
छृष्णात्परं किमपि तत्त्वमहं न जाने ॥
प्यारे ! तुम्हारे चतुर्मुज, पड़भुज, अष्टभुज और सषटखथुज आदि
रूप भी होंगे, उन्हें में अख्ीकार नहीं करता । अस्वीकार करूँ तो तुम्हारी
स्वतन्धताम बाधा डाछ्नेका एक नया अपराध मेरे ऊपर छग जायगा ।
इसलिये वे रूप हाँ या न भी हों उनसे मुझे कोई विद्येप प्रयोजन नहीं ।
मुझ्षे तो तुम्हारा चद्दी किशोशवस्थाका काछा कमनीय रूप, बही मन्द-मन्द
मुसकानवाला मनोहर मुख, वही अरविन्दके समान ख़िले हुए नेत्र, वही
मुरलीकी पश्चम ख्वस्वाली मधुर तान और वही पीताम्बरका छटकता हुआ
छोर ही अत्यन्त प्रिय ই | प्यारे | अपने इसी रूपसे तुम इस दासके मन-
मन्दिरम सदा निवास करते रहो, यही इस दीनकी एकमात्र प्रार्थना है।
- “७३१5४ ४६८८--
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