वैदिक इंडेक्स ऑफ़ नेम्स एंड सब्जेक्ट्स [खंड २] | Vedic Index Of Names And Subjects [Vol. 2]

Vedic Index Of Names And Subjects [Vol. 2] by आर्थर एंथोनी मैकडोनेल - Arthur Anthony Macdonellआर्थर बेरीडेल कीथ - Arthur Berriedale Keith

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पुरो-हित ] ( ई ) [ पुरो-हित [7 हैं ।१३ इस प्रकार यह स्पष्ट है कि ब्रह्मन्‌ अक्सर पुरोहित होता था; भौर उस समय इसका ऐसा हो जाना स्वधा स्वाभाविक भी था जब एक बार बहन का स्थान, जेधा कि बाद के লহঞ্চা में निश्चित रूप से हैं, यज्ञ के समय सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पद बन गया [7 किन्तु यह कह सकना कदाचित्‌ ही सम्भव है कि पहले के संस्कार में भी पह्मनू का ऐसा ही स्थान था। भौर्डेन- चग“ सपने इत्र विचारे ठीक ही प्रतीत होते हैं कि ऋत्विजों के साथ महान्‌ यज्ञ-संस्कार सें किसी प्रकार का भाग लेने के अवसर पर पुरोहित मूलतः 'होत” के रूप में ही कार्य करता था। इसीलिये, देवापि स्पष्ट रूप से एक “হীন? খাঠ১৪ জন্কি भी एफ साथ ही पुरोहितः भौर होतृ** दोनों ही हैं; जीर आप्री सूक्तों में वर्णित दो “दिव्य दोतृयों' को भी दो पुरोहित? ही कहा गया है ।* इसमें सन्देह नहीं कि वाद में, जब पौरोहिस्य-कर्म के अन्तर्गद केवल गायन ही नहीं रह गया, तो अपनी अभिचारीय योग्यताओं के कारण पुरोहित वह লইলু অল বাতা জী न्त-सम्बन्धी चुचियों के परिमार्जन्‌ के चयि भी अभिचार का प्रयोग करता था |** इस वात में कदाचित्‌ ही सन्देह है कि पौरोहिव्य ৯ मौलिक विकास में पुरोद्ितों ने पयाप्त योगढान दिया था। ऐतिहासिक समय में पुरोहित राज- सत्ता की वास्तविक शक्ति का प्रतिनिधित्व करता था, और यह सहज ही ^“ तैत्तिरीय सिता ' ३ ५, ২, १। यह सर्त लिटरेचर, १९१, १९५। स्थिति काठक सहिता ३७ १७ (किन्तु | 3४ देखिये ब्लूमफील्ट : उ० पु० 1शाए, „ प° की० २७, ४ ; ब्रह्म-पुरोहित छिप, 1) 1৮721 और वाद । क्षत्रम्‌. का जव तकर क्षत्र, तहे हीन | 3५ रिलीजन देस वेद्‌, ३८०, ३८१ । है? अर्थ न माना जाय ) » यज्नर्विश ऋग्वेद १०. ९८८ और तु० की० পান १५ ५, २४ के स।मात्तान्तर पत्चविश माह्मण १४ ६, ८, आख- स्थरो प्र नहीं है, और तु० की० लायन गृद्य सूत्र १ १२, ७। गोपथ ब्राह्मण २. ९, ६२, भी । अथ- | > ऋर्वेद्‌ » १, १; ३ ३, २, ११, वेनू साहित्य ( व्लूमफील्ड. अथर्ववेद ९, ५ ११, २। ८. २७, १, १० के सूक्त, ५, 11) के अनुसार इस १, ६, में इसे पुरोहित कष्ठा और वेद के अनुयायियों को व्रह्मन्‌ के रूप होत पुरोहितों के विशिष्ट कार्यों को में कार्य करना चाहिये और अथवन के सम्पन्न करनेवाला वताया गयाहै।ः अभिचाराय मन्त्रो की वास्तव म रेत- | २८ ऋग्वेद > ११; ३. ३,२; ११, रेय बाह्मण ८ २४-२८ दारा व्यक्त | ` १;५ १४, २त्यादि। पुरोहिन के अभिचार के साथ धनिष्ठ | ३१ ऋगवेद १० ६६, १३; ७०, ७। समानता है। तु० की० मैकडौनेल : [-7” तु० की ऐनरेय ब्राह्मण ७ २६ ।




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