तुलसी दर्शन | Tulsi Darshan

Tulsi Darshan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तुलझ्ी-दर्शन प्रथम परिच्छेद गोस्ामी जी ओर मानस मानव समुदाय में सामान्यतः यही 'देखां जाता है कि लोग आम के फन खाते हैँ उसकी जड़ों का निरीक्षण नहीं करते, मधुर भरने-का शीतल जल्ल पोकर प्रसन्न होते हैं उतके स्रोत की छानबीन नहीं किया करते | टीक्‌ इसी तरद वे ल्क किषी सत्कवि कौ रचनाश्रं का सुरस तो श्रवदय चखना चाहते रं परन्छ॒ उसके व्यक्छित्व से श्रयवा उदी जीवनी से वसा वास्ता नहीं रखते । यही कारण है कि केवल तीन ठौ वपं पूं इसी भारत में सुद्ीघ काल तक विद्यमान रहने वाले हिन्दी के सवश्रे्ठ महाकवि का जीवनचरित्र अब तक रहस्यमय बना हुआ है | कोई उन्‍हें कान्यकुब्ज कद्दते हैं कोई सरयूपारीण और कोई सनाढब्य | कोद उन्हे मिश्र कते, कोई दुवे और कोई शुक्ल । कोद उनके जन्प्रस्थान दोने का गौरव राजापुर को देते हैं कोई तारी को ओर कोई 'सोरों (सूकर ज्षेत्रे कों। कोई उनका जन्म संवत्‌ १५५४ , मानते है को १५८३ कोई १५६६ कोई वख शुक्ल सप्तमी को उनकी जन्म तिथि मानते हैं और कोई निधनतिथि। इसी प्रकारन जाने कितने मतभेद उनकी जीवनी के विपय मेँ श्राज दिन तक विद्यमान ই) “कल्याण?” भाग ११ संख्या ३ के पृष्ठ ७७३ में श्री बालकरामजी विनायक ने “श्रीगोस्यामी जी के , नामराशी”? शीषक एक लेख लिखकर




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