श्रीवृत्ति प्रभाकर | Shrivriti Prabhakar

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Shrivriti Prabhakar by निश्चलदास - Nishchhal Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५ इस बातको स्पष्ट किया जाता है कि ज्ञानके अतिरिक्त अन्य जितने भी साधन है वे सब भिन्न-भिन्न किस-किस ज्ञानके प्रतिवनन्‍्धक दोपको निवृत्त करके किस-किस रूपमे ज्ञानमे सहायक होते है । विस्तारसे यह নিন हमारे द्वारा आात्मविलास ग्रन्थमे स्पप्ट किया गया है, जिनको जिज्ञासा हो चहां देखें । ज्ञानके प्रतिवन्धक दोष ओर उनकी निवृत्तिका उपाय (१) “निष्काम कर्म---जैसा ऊपर हॉजके दुष्टातसे स्पष्ट किया गया है, मटियाले जलके समान हृदयमें स्थित मलदोप ज्ञानका प्रतिवन्धक हैं। उस निप्काम-कर्मके आचरणसे उस मल-दोपकी निवृत्ति होती है । बर्यात्‌ सकाम-कर्मकी अवस्थामे अव्यवसायात्मिका वुद्धि होनेसे जहाँ भांति-भाँतिकी वासनाओोका प्रवाह हृदयमे उमड़ रहा था और उसके फल- स्वरूप जीवकी गति 'तवेसे उतरे तो चूल्हेमे गिरे' के समान बनी हुई थी, इसके स्थानपर इस निष्काम-कर्मके आचरणसे इस जीवको व्यवसाया- त्मिका बुद्धि प्राप्त हो जाती है, जिससे मानव-जीवनका लक्ष्य ससार न रहकर भगवत्पाप्ति ही लक्ष्य बन जाता है । कर्मफल भगवद्दर्पण-बुद्धिसे रजोगृणी कर्मेका वेग घटने लगता है और रजोगुणके घटनेसे जिस भगवान्‌- को कर्मफल समर्पण करिये जाते थे उसकी प्रेमा-भक्तिका वीज फूट निकलता है। इस प्रकार यह निप्काम-कर्म जानमे प्रतिवन्वक मलदोपका तो निवतेके और ज्ञानमे उपयोगी उपासनाका उद्बोधक सिद्ध होता हे । (२) “डपासना--मल-दोपके निवृत्त होनेसे यद्यपि दुर्वासनाओंसे तो पल्‍ला छूट गया, तथापि हृदयमे चचलतारूपी विक्लेप घर किये हुए है, जिससे ससारी विषयोका राग हृदयसे छूट नही पाया है, क्योकि विषय- विरोधी किसी अन्य रागने अभीतक हृदयमे पकड नहीं की । और यह नियम है कि हृदय सर्वथा रागशून्य नही रह सकता, इसलिये ससारी राग निकालनेके लिये इममे भगवत्‌-चरणारविन्दोका राग भरना जरूरी है । इस प्रसगमे रागका सामान्य अर्थ प्रेम है । इधर चचलताके कारण हृदयमे




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