कहानी - संग्रह [भाग २] | Kahani Sangrah [Bhag 2]

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Kahani Sangrah [Bhag 2] by विभिन्न लेखक - Various Authors

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शये [ मिथओीवाला राय विजयवहादुरके बच्चे भी अक दिन खिलोंने लेकर घर अये | वे दो बच्चे थे---चुन्नू और मुन्नू | चुम्नू जब खिलोना के आया, तो बोला--“मेला घोछा कैछा छुन्दल जै [? मुन्नू बोला---“औल, मेला आती कैसा छुन्दल ओ [” दोनों अपने हाथी-घोड़े छेकर घर-भरमें झुछलढने छगे। आन बच्चोंकी माँ, रोहिणी कुछ देर तक खड़े खड़े अुनका खेल निरखती रही । अन्तम दोनों बच्चोंकी बुछाकर श्ुसने अुनसे पृा-- “अरे ओ चुन्नू-मुन्नू, ये खिलौने तुमने कितनेमें लिये हैं?” मुन्नू बोला---“दो पेछेमें खिलोनेवाछा दे गया जे |” रोहिणी सोचने छगी--“जितने सस्ते कैसे दे गया है, कैसे दे सकता है ? यह तो वही जाने | लेकिन दे तो गया ही है, जितना तो निश्चय है 0” | अक जरा-सी बात ठहरी, रोहिणी अपने कामे कग गयी | फिर कभी अुसे जिसपर विचार करनेकी आवश्यकता ही मरा क्यो पड़ती ? ' छ महीने बाद । नगर-भरमें दो ही चार दिनोंमें ओक मुरलीवालेके आनेका समाचार फैल गया | लोग कहने रंगे---“भाणी बाह | घुरछी बजा- नेमे वह्‌ ओक ही जुस्ताद दै । मुरली बजाकर, गाना ` घुनाकर, वह मुरली बेचता भी है, सो भी दो दो पैसे | मछा जिसमे भुसे क्या मिलता होगा | मिहनतृ भी न आती होगी ।”




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