राजस्थानी साहित्य कुछ प्रवृत्तियाँ | Rajasthani Sahitya Kuchh Pravritiyan

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Rajasthani Sahitya Kuchh Pravritiyan  by डॉ नरेन्द्र भागवात - Dr Narendra Bhagawat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राजस्थानी गद्य की विशिष्ट शेलियाँ भर की विधि का वर्णान रहता भ्रथवा एसे प्रश्नोत्तर ग्रंथों की रचना होने लगी जिनमे जिज्ञातु प्रश्न करता और श्राचार्य उसका उत्तर देकर जिज्ञासा ब्लान्त करते । तत्त्वचर्चा श्रौर विधि-विधान को लेकर भी कई ग्रंथ लिखे मये । साधुकोर्ति जयत्तोत, शिव-निधान, समयसून्दर, सतिकीत्ति, संत भीखणजी, जयादय भ्रादि ने स धार्मिक साहिव्य को समृद्ध बनाया] जैनेठर लोगो ने इस प्रकार के धार्मिक साहित्य की मौलिक सृष्टि बहुत रूप की । उन्होने पुराणादि से अनुवाद ही श्रधिक किया | सोलिक रूप मे ब्रत-कंथाएं ही श्रधिक लिखी गई' । इन ब्रव-ऊुथाप्रों पे एकादशी, नुर्सिह-चतुर्द शी, जन्माएमी, 5 रामनीपी, सोमवती-अ्रमावस्था, ऋषि-पंचमी, गणेश-चत्तुर्धी, नाग-पंचमी प्रादि की कथाएं प्रमुख ই ও धाभिक साहित्य प्रधानत. दो शैलियो में लिखा हुआ्आा मिलता है । জলশ্ীলী प्रोर जेनेतर शैली । दोनो गद्य-शेलियो मे इतना अन्तर नही मिलता जितना जैन कवियों श्रौर चारण कवियोकी पद्य दैवियो मे मिलता है। जैन-शैली प्रपेक्षाकृत प्राचीन होने के कारण अपभश्र श से प्रभावित ह जव कि जेनेतर नेली में चलती भाषा का ही प्रयोग हुआ्आा है । उसमे देशज शब्दों को भी समुचित स्थान दिया गया है । इसका एक कारण यह भी रहा कि जैनेतर दौली में यह ध।मिक साहित्य बहुत बाद मे जाकर रचा यया । धीरे-धीरे जच शैली भी श्रपश्र श (के प्रभाव से मुक्त हो रही थी । १--चौवीसमे बोले समय २ अ्रचंती हानि छे ए वचन सूत्र प्रनुसार छे। पिणं कहणमात्र हीज नहीं छे समय २ एकेक वस्तु ना २ पर्याय घंटे छे । -- प्रश्नोत्तरसाद्ध शतक पत्र २ (ख) २--भादवा-माप्त-श्र धारा पख्॒ री श्राठम प्रावे छु जन्माट्टमी रो बरत राजा प्रभरीख करें छे । राजा बलीप करतो । राजा द्िभीपणा करतो । विजाही बड़ा- बडा राजा जन्माष्टमी रो वरत करे छे। यु इस वरत कीया से इतरो पुन्य छे । कपिला गाय, सोवने सीगी, रूपा खुरी, चाब पुछी तितरो पुन्य हुवे । লী লু कुरखेत माहे सुरज गिरहरा माहे सोनो दीजें, सो भादरबानों दीया रो पुन्य होदे জিজতী पुन्य हुवे + बले जेतराई तीरथ छे, तितरा नायारो फल हुवे, इतरो फल छै । -- राजस्यानी त्रत कथाएं: पृष्ठ ४४ ३--विज्येष विवरण के लिए देखिए;:-- राजस्थानी ब्रत-कवाएं : सम्पादक--- मोहनलाल पुरोहित 1




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