विवेक चूड़ामणि | Vivek Chudamani
श्रेणी : काव्य / Poetry, हिंदू - Hinduism
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.76 MB
कुल पष्ठ :
240
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भाषादी कासमेतः । (३)
त्रह्स्ात्मना संस्थितिर्मुक्तिनों शतजन्मको-
टिसुकृतेः पुण्वैरविंना ल्यते ॥ २ ॥
चौरासी लक्ष -योनिश्रमणकारि मनुप्य शरीर
होना अथम दुभ है देवयोगसे मनुष्य चारीर प्राप्त
छुआ तौभी सबकम्मीका अधिकारी ब्राह्मण
होना दुलेभ हैं, ब्राह्मण दोनेपरभी वैदिक धर्म
परायण होना कठिन है, वैदिक धर्म होनेपरभी
विद्वा होना इदुछभ है, विद्वावकोभी आत्म
अनात्म वस्तुका विवेक अलस्य है, आत्म अनात्म
विवकसेभी र्पयं अहुभव करना दुललभ है, अतुभ-
सेनी में ब्रह्महूं ऐसी स्थिति होना ढुघेट है
देवाधीन ये सब होनिपरभी कोटिहूँ जन्मके किया
हुआ पुण्यसम्ूदके सहायता बिना मोक्ष होना
कठिन है ॥ २॥!
दुलभ ्रयमंदेतदेवातुम्रददेतुकम् ।
नुष्यत्त्व सुमुशुत््व महाएुरुपसं श्रेय । डेप
सब वस्तुओं थे तीन वस्तु परम दुलंभ हें
केवल देवता ओके अत्तम्दसे होता हे एक तो मन
प्य होना, दूसरा मोक्षकी इच्छा होना । तीसरा
प्रत्रस्रूपताकों प्राप्त हॉना ॥ ३ ॥
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