संत महात्माओं का जीवन चरित्र संग्रह | Sant Mahatmaon Ka Jeevan Charitr Sangrah

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Sant Mahatmaon Ka Jeevan Charitr Sangrah by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भहात्मा धनी धमंदास का जीवन-चरित्रे १३ ' उनको नास्तिक और भला बुरा कह कर निकाल देना चाहा परन्तु धम्मंदास जी ने रोका ओर उनसे देर तक चर्चा करते रहे जिससे उनकी कुछ शांति हुई । फिर कबीर सेव ने मौज से यह चमत्कार दिखलाया ङ्के एक हिचकी लेकर अपने गले से शालग्राम की वटिया निकाल कर घर दी ओर फिर उसको बुलाया तो वह हाथ पर आ बैठी । यह कौतुक देखकर धम्म॑दासजी के चित्त में पूरी रीति से कबीर साहेब की महिमा बैठ गई और अपनी ख्ली और पुत्रों को भी उनके चरणों पर गिराया | उनकी स्नी और जेठे पुत्र चूड़ामणि ने तो पूरे भाव से कबीर साहेव की शरण ली ओर उनकी गुरू धारण किया परन्तु छोटे बेटे नारायणदास ने नाक़ भेंव सिफोड़ ली और कबीर साहेब को पाखंडी और जादूगर ठहराया । इन दोनों कथाओं से संतों के इस बचन का प्रमाण मिलता है कि जब स्वतः संत जगत में पधारते हैं. तो अपनी निज अंश अर्थात्‌ गुरुपुख को भी देर सबेर लाते हैं और उसी के द्वारे सारी रचना को पतित्र करते हैं। यद्पि गुरुपुख को परमार्थ का चाव लड़कपन ही से रहता है, परन्तु पहले माया का पर्दा उस पर पड़ा रहता है--जब समय आता है तब सतगुरू उसे अपने दर्शन ओऔर बचन से एफ छिन में चेता देते हैं ओर माया के परदे को हटा देते हैं । जैसे कबीर साहेब पहिले संत अवतार हुए ऐसे ही धनी धम्मंदासजी पहिले गुरुणुख प्रगट हुए जो कबीर साहेब की दया दृष्टि से संत गति को प्राप्त हुए | धम्मेदासजी ने कबीर साहेब की शरण लेने पर अपना सारा घन दौलत लुटा दिया ओर काशी में गुरु चरणों में रहने लगे | उनके पीछे उनके बड़े बेटे चूड़ापणिजी ने भी वही ऊँचा पद पाया परन्तु नारायणदास संतो की साखी कै अनुसार काल के अवतार समझे जाते हैं । कबीर साहेब के सम्प्रत्‌ १५७४ में परमधाम को सिधारने के पीछे धम्मेदास जी को उनकी गद्दी और सब ग्रंथ मिले और वह बहुत बरस तक जगत जीवों को चेताते और संत मत दढ़ाते रहे। उनके गुप्त होने पर चूड़ा- मणिल्री को गद्दी हुई और सब ग्रंथ मिले सिवाय कबीर साहेव के बीजक के जिसे भागु धस्पदासजी कै गुरुमाई ने चोरा कर भगवान. गोसोई के हाथ प्ुकाम घनोली जिला तिरहुत को भेज दिया और फ़िर वहाँ. अपनी गद्दी अलग क्रायम की |




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