रावण कृत उड्डीश तन्त्रम | Raavan Krita Muddisha Tantram

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Book Image : रावण कृत उड्डीश तन्त्रम  - Raavan Krita Muddisha Tantram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भाषारीकासहितस्‌ । श्द मूखेंग तु ऊते तन्त्रे स्वस्मिन्नेव समापयेत्‌ । तस्मात्‌ रच्य॑ सदात्मानं मरणें नक्वचित्च रेत्‌॥॥४२ । झथे-मुखें का किया हुआ प्रयोग उसी को सए कर देता है झत पव जो सर्चेदा झापनी श्रात्मा की रक्षा करना चाहे उस- को कसी मारण प्रयोग न करना चाहिये ॥ ४२ ॥ नेहझात्मानं तु विततं दृ्टा विज्ञानचक्ुषा । सत्र मारणं कार्यमन्यथा दोषभाग्मवेत्‌.। कर्चव्य॑ मरणं चेतरयात्तदा कृत्य समाचरेत्‌ 12३॥। श्रथे-जों घह्मकों जाननेवाला झपनी कान यु से स्तर घहामय देखता रदता है यदि चह् किसी आवश्यक च्वारयवश मारण प्रयोग करे तो शालुचित लहीं है। इसके विपरीत जो मार का झ्र्योग च्रता है बह उस पाप का भागी होता है . यदि मारण करना हो-पड़े तो निम्नलिखित क्रिया के झाचुसार मारणु करना चाहिये ४३ ॥ ही रपुपादतलात्पासुं गुद्दीता पुचलीं कुरु । . चिताभस्मसमायुक्तं मध्यमारुधिरान्वितम्‌ ॥। 2४ ॥ छाथे-शत्रु के पैर के नीचे की सिट्टी में चिता की भस्म




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