तरंगिनी | Taringini

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Taringini by प्रदीप कुमार - Pradeep Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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16 क्या आन्तरिक जीवन के मूल नियम-जैसे कि प्रत्येक क्रिया के समान एवं विपरीत उसकी प्रतिक्रिया होती है, प्रत्येक वस्तु का अस्तित्व किसी अन्य वस्तु से सम्बन्धित रहते हुए ही सम्भव है (सम्बद्धता का नियम) आदि--प्रकृति के नियमों के अनुरूप नहीं हैं? मानव शरीर, प्रकृति का अन्तिम उत्पाद, प्रकृति के नियमों द्वारा ठीक उसी प्रकार से अपने आपको शासित करता है जिस प्रकार से प्रकृति स्वयं को शासित करती है। शरीर, मस्तिष्क और आत्मा का अनुरक्षण सहजता है तथा इसी त्रिक में कुव्यवस्था हो जाना असहजता अथवा रोग की निशानी है। कोम्मिरिक्स के प्रयोग से प्राकृतिक रूप से व्यवस्थित आन्तरिक सुव्यवस्था में कुव्यवस्था उत्पन्न हो सकती है जिससे विभिन्‍न प्रकार के चर्मरोगों व अन्य रोगों को बढ़ावा मिलता है। आन्तरिक नियमों का उल्लंघन करने पर मनुष्य को प्रकृति दारा दण्डित किया जाता है; दण्ड की माना उल्लंघन की प्रकृति, प्रकार ओर प्रसार पर निर्भर करती हे । प्रकृति दारा दण्ड देने की अपनाई गयी प्रक्रिया प्राकृतिक न्याय के तिद्धान्तो० पर आधारित रहती हे । किसी रोग के वास्तविक आक्रमण के पूर्वं अर्थात्‌ उल्लंघन करने वाले को वास्तविक रूप से दण्डित करने के पूर्व प्रकृति उतल्लंघनकर्ता को नियमानुसार सूचना देती है । इसके साथ ही वह उतल्लंघनकर्ता को अपनी व्यवस्था को सुव्यवस्थित करने हेतु तमुवित एवं पयाप्ति जवसर- देती है। प्रकृति पक्षपात भी नहीं करती है। जो अपने आन्तरिक प्रतिक नियमो का उल्लंघन करते है তল্ই प्रकृति दण्डित करती है; जो इन नियमों का नियमित रूप से अनुपालन करते हैं उन पर प्रकृति प्राकृतिक प्रसन्‍नता की वर्षा करती है। यह प्रकृति का नियम है कि ऋणात्मकता* में चक्रविधि ब्याज के रूप में प्रसार होता है तथा धनात्मकता* अत्यन्त ही धीमी गति से गतिशील रहती है। यदि कोई रोग ठीक हो जाता है तो इसके बाद उसी रोग का दूसरा आक्रमण, यदि हो तो, पहले आक्रमण की अपेक्षा अधिक गम्भीर रूप से होता है। जब मनुष्य को आन्तरिक नियमों के उल्लंघन के लिये प्रकृति दारा दण्डित किया जाता है तो क्या उसे बाह्य जगत्‌ मे विद्यमान प्राकृतिक नियमों का उल्लंघन करने पर प्रकृति दारा क्षमा कर दिया जायेगा ? क्या वह अन्तरिक्ष की प्राकृतिक व्यवस्था का उल्लंघन करके उसमें विकार उत्पन्न करने के लिये उत्तरदायी नहीं होगा ? किसी भी प्रकार की प्राकृतिक व्यवस्था, चाहे वह आन्तरिक हो अथवा बाह्य का उल्लंघन अपने निर्धारित समय मेँ अवश्य ही प्रतिकारित होता है । तमाज हम उसे जिस रूप में मान्यता देते हैं-का निर्माण मादा के चारों ओर शिशुओं के एकत्र होने पर आरम्भ हुआ। मादा ने प्रजनन (उत्पादन) और देखरेख तथा नर ने भरण-पोषण तथा सुरक्षा का कार्यभार ग्रहण किया। यद्यपि तन्निका विन्यास का विकास जिसके कारण सूचनाओं का एकत्रीकरण ओर उनका




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