दिनकर एक पुनर्मूल्यांकन | Dinkar Ek Punrmoolyankan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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समार कल्पना क कवि १ हुकार' की आलोकधन्वा' कविता में दितकर की एक पंक्ति है--ज्योति- धनु की शिजिनी बजा गाता हूं । शिजिनी का एक अर्थ तो धनुष की डोरी होता है, किन्तु यहाँ 'बजा गाता हूँ के कारण उसका करघती अर्थ ही घ्वतित होता है। श्रत. क्िजिनीके विश्व को भी दिनकर ने रूमानी बना दिया। उसी प्रकार पदगम्बरी' जीर्पक कविता का शीर्षक ही रूमानी हैं। उसी कविता में दिनकर से लिखा है : उठाने मृत्यु का घूंधट हमारा प्यार बोला ।! मृत्यु के प्रसग मे सभी कवियोँ ने वलासिक्ल बविम्बों का ही प्रयोग किया हैं। प्रसाद-जैसे छाया- শাহী कवि ते भी 'कामायती' में मृत्यु के लिए क्लासिकल बिम्बों का ही प्रयोग किया ই अथवा रूमानी जिम्बों की रूमानियत का अभ्रपहरण कर लिया। प्रसाद ने मृत्यु को 'चिरनिद्रा' कहा हैं। निद्रा अपने आप मे रूमानी विम्ब है किन्तु चिर विक्षेपण जोड़ कर प्रसाद ने उसकी रूमानियत का अपहरश कर लिया। रक रूमानी बिम्ब है किम्तु प्रसाद उसे 'हिंमानी-सा छीतल' बतला कर उसकी छमामियत का अपहरण दार लेते है। उसे 'काल-जलमि की हलचल कह कर प्रसाद कितना गभीर बना शालते हैं। पुनः वे मृत्यु को महानुत्य' कहते हैं कितना भयकर बविम्य विधान है यह--परिस्थिति के अनुकूल । टीक इसके विपरीत दिनकर मृत्यु का घृघढठ' उठाने की बात करते हैं--लगता है कि 'उस घंघट से कोर रूपसी शाक उठेगी। यह रूमानी दृष्टिकोण की पराकाष्ठा भविष्य की प्रषः शीर्षक कविता म “एरी वसुधा प्रसव की पीर जैसी प्रभिव्यजना भी रोमाटिक ही कही जायगी। दिनकर क्रान्तिके लिए जिस शख को फंकते हैं, यह चांदी का उज्ज्वल शख है। पुनः, क्रान्ति करने के लिए वे आदेश भी किसी 'स्वामिनी' से ही लेना चाहते हैं। छायावाद पर सुजनीवाद' का आरोप रूगाग्रा गया था। दिनकर कुमारीवाद' से ग्रस्त हैं । केवल हाहाकार' शीर्षक कविता में ही चार बार कुमारी को उन्होंने सम्बो- घित किया है। कुमारी के লালা शब्दों के प्रयोग तो अलग हैं जैसे-- 'विलासिशी 17 छकार' में प्रकृति सम्बन्धी प्रसग कम हैं, किन्तु, कही-कही सामाजिक प्रसमों मे मी प्राकृतिक विभ्वं उपर आये हैं। बन-फूलो की श्रोरः यौर्षक कविता प्रधानतया कश्य की दृष्टि से सामाजिक है, किन्तु बिम्ब रूपाती हैं । कविता कवि से बहा ही रोमाटिक भसुरोध करती है कि तुम भिखारी का बेश धारण करो और मैं 'भिखारिती' बन जाती हूँ ! सध्या स्व श्रचलो वाली है, खेतों मे श्यामपरी उतर झागी है | खीपाल में बैठे हुए कृषक गा रहें हैं कहें टके बनवारी उसी समय पनघट से पीतवसना सुकुमार गुव




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