दानचिन्तामणि (एक ऐतिहासिक उपन्यास) | Danchintamani (Ek Itihasik Upanyas)

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Danchintamani (Ek Itihasik Upanyas) by ब्रामण जी

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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य शापस्य के यहं कमत में एव प्म के एमी भार्मक़ पुकि थे, घह्०ं एक इदृठरा बना बा। शइस पर समबसरबज का दुष्य सजाबा बा था। बोनें का समवसरण বা । रत्नों का तोरष छपा या | चांदी दे হানি হ। হি নশি के तीत प्रीठ रले हुए बे । अंतिम पीड पर केसर फैछाए हुए चारों जोर महू किए भार पिंह थे! मि्टों के बौड़ ऐप मे चिरे इर्‌ रष्व मरू भे। दम कमणो पट जित विंग स्था हवा भा | बहू पारदर्क पौरिका की मूषी! उष मृष्ठिके पोछे थो का विया प्रस्यकछित था | प्स मति से छतका जनेनाणी दौप-किरजों मे सूरण रस्मि का ध्मप्र फैडा दिया बा। प्राषर्कों को ऐसा कमा मार्षों थे सचमुच कृमशउरच हौ देश रहे हों | चव कणी भाषप्रस्प का सतत शाद उत्कर्पे इक्षा तक पहुंच जाता ऐसे इप्मो को छजाकर अए्एर्प हो बाता। वापस्म्य मे इस दिलों यें र/अकाज का श्रवण €्याय किया णा) जपते सुशोम्प पृत्नों पर पह भार डाक कर आप जाध्यात्मिक पाषना में छप्रे हुए बे । परियार के छोड पावमय्द से प्यं क डभापछ में अग मात रडे बे।अतएव कोई उससे बातें नही करठा था । गश भिमभ्वे जौर भुदुमम्बे में इतना ष्व শা কি दादाजओों সী भके माकर शा कर्ती थीं। जगह देख धर के लोगों मे इम्ह्मीं दोनों শি জিদ নামল কী शुझू-सुद्धियात्षों श्रो बात छोड रही भौ। बाषमम्प कौ दाप्यारिमकता का प्रभाव इत दोनों पर सी पड था । जब भाहे तद ने बाडहिकाएँ जाप हो समदसतरण कौ प्लांकौ छा देती थी। और स्वय इस्दाजी बन छाती छोर दितमूति को मोद परिकर छिडादी थीं। जाज लो एके उत्था का पारमार उमड़ पडा भा। মনকে কী एक ओर निन्द और पोप्त के बीच में पपकणि सुझासौत ब हो सूतो बोर भाषमप्य एबं दो-एक बष्ण ब्यतित बैठ हुए थे। अत्तिमम्यं भौर पुष सब्बे के जबितव का पृष जौ हुआ वा। है




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